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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/५५

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आंतर संचारी-भाव


भावार्थ—अपने प्यारे की याद कर उससे मिलने के लिए आतुर होकर कुछ भी अच्छा न लगने के भाव को उत्कण्ठा कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

कैधों हमारिये बार बड़ो भयौ, कै रवि को रथ ठौर ठयो है।
भोरते भानु की ओर चितौति, घरी पल तें गनते ही गयो है॥
आवतु छोर नहीं छिन कौ, दिन कौ न अभै लगि जाय गयो है।
पाइये कैसिक सांझ तुरन्तहि, देखुरी द्योस दुरन्त भयो है॥

शब्दार्थ—कैधौं—अथवा, या। कै—या। रवि कोरथ—सूर्य का रथ। ठौर ठयो है एकही जगह खड़ा रह गया है। भोरतें—प्रातःकाल से। चितौति—देखती हूं। घरी....गयो है—एक एक पल गिनते बीता है। आवतु छोर नहीं—अन्त नही आता। जाम—याम, समय। कैसिक—कैसे। द्योस—दिन। दुरन्त—बड़ा भारी।

२१—नींद
दोहा

चिन्ता आरस खेद ते, बसे तुचां चितु जाय।
सुपन, दरस, अवयव चलन, एकउ नींद सुभाय॥

शब्दार्थ—आरस—आलस्य। सुपन—सपना।

भावार्थ—चिन्ता, आलस्य, खेद आदि के कारण एकाग्रचित हो सो जाने तथा सपने में दर्शनादि होने को नींद कहते हैं।