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आंतर संचारी-भाव
भावार्थ—दुर्जनता अपराधादि से उत्पन्न निर्दयता को उग्रता कहते हैं। इसमें ताडना, वध आदि अनुभव होते है।
उदाहरण
सवैया
मोहन माई भए मथुरापति, देव महामद सों मदमातौ।
गोकुल गाँव के गोप गरीब हैं, बासु बराबरि ही कौ इहाँतौ॥
बैठि रहौ सपने हूँ सुन्यो कहूँ, राजनि सो परजानि सों नातौ।
कोरे परै अब कूबरी के, अब याते कियो हमसो हित हातौ॥
शब्दार्थ—बासु बराबरि...तौ—यहाँ तो बराबर का ही व्यवहार है। सपने हूँ ... नातौ—सपने में भी कहीं राजा और प्रजा का रिश्ता सुना है। हातौ—दूर किया-अलग किया।
२९—व्याधि
दोहा
धातु कोप प्रीतम बिरह, अन्तर उपजै आधि।
जुर बिकार बहु अङ्ग मैं, ताही बरनैं व्याधि॥
शब्दार्थ—जुर—ज्वर।
भावार्थ—शरीर की धातुओं के कोप अथवा अपने प्यारे के वियोग के कारण शरीर में किसी विकार के उत्पन्न हो जाने को व्याधि कहते हैं। इसमें ज्वरादि लक्षण प्रकट होते हैं।