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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/८६

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भाव-विलास

 

८—बिब्बोकु
दोहा

प्रिय अपराध धनादि मद, उपजै गर्व्व कि बारु।
कुटिल डीठि अवयव चलन, सो बिब्बोकु बिचारु॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—प्रेमी के अपराध पर अथवा धनादि के मद से हृदय में अभिमान उत्पन्न होकर टेढ़ीनिगाह से देखना और भौंह आदि नचाकर मान दिखलाना बिब्बोकु हाव कहलाता है।

उदाहरण
सवैया

स्थामले सौति के संग बसे निसि, आँगनि वाहि के रंग रचाइकै।
आए इतै परभात लजात से, बोलत लोचन लोल लचाइ कै॥
देव कों देखि कै दोष भरे तिय, पीठि दई उत दीठि बचाइ कै।
ज्यो चितई अरसोहें रिसोहैं, सुसोहे सखीन के भौहें नचाइ कै॥

शब्दार्थ—स्यामले—श्रीकृष्ण। वाहिं रंगरचाइकै—उसीके रंगमें रंगे हुए। इतै—यहां। परभात—प्रातःकाल, शुबह। बोलते...लचाइकै—लज्जा के मारे आँखे नीची करके बोलते हैं। पीठ दुई—पीठ फेर के बैठगयी।

९—ललित
दोहा

मन प्रसाद पति बस करन, चमत्कार चित होइ।
सकल अंग रचना ललित, ललित बखानै सौइ॥