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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/९३

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वियोग शृंगार

 

२—गुण कथन
दोहा

प्रिय के सुन्दरतादि गुन, बरने प्रेम सुभाइ।
साभिलाष जो गुन कथन, बरनते कोविदाइ॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—अपने प्रतिम के गुणादि के साभिलाष वर्णन को गुणकथन कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

दामिन ह्वै रहिये मन आवत, मोहन को घन सौ तन घेरे।
वाहो कौ देखिये री दिन रातिहू, कोई करौ किन कोटि करेरे॥
श्याम की सुन्दरताई कहौं कछु, होहिं जो जोभ हजारन मेरे।
केवल वा मुख की सुखमा पर, कोरि ससी गहि वारि के फेरे॥

शब्दार्थ—दामिन—बिजली। मोहन......घेरे—श्रीकृष्ण के बादलों जैसे शरीर को घेर कर। वाही कौं—उसी को। कोई करो......कोटि—करेरे चाहे कोई कुछ भी करे। होइ जो......मेरे...यदि मेरे हजार जीभ हों। केवल...फेरे—केवल उस मुख की सुन्दरताई पर करोड़ों चन्द्रमा निछावर कर दिए।

३—प्रलाप
दोहा

अति उत्कण्ठा मन भ्रमन, पिय जनही कोलाप।
देव कहै कोविद सबै, बरनत ताहि प्रलाप॥