सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरा प्रकरण भाषा और भाषण · मनुष्य और मनुष्य के बीच, वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और भति का आदान-प्रदान करने के लिये व्यक्त ध्वनि-संकेतों का जो व्यवहार होता है उसे भापा कहते हैं। इस परिभाषा में भाषा के विचारांश पर अधिक जोर नहीं दिया गया है। भाषा विचारों को व्यक्त करती है, पर विचारों से अधिक संबंध उसके वक्ता भाव, इच्छा, प्रश्न, आज्ञा आदि मनोभावों से रहता है। 'विचार' को व्यापक अर्थ में लेने से उसमें इन सभी का समावेश हो सकता है, पर ऐसा करना समीचीन नहीं होता; वह प्राय: स्पष्टता और वैज्ञानिक व्याख्या का घातक होता है। साधारण से साधारण पाठक भी यह समझता है कि वह सदा विचार प्रकट करने के लिये ही नहीं बोलता। दूसरी ध्यान देने की बात यह है कि भाषा सदा किसी न किसी वस्तु के विषय में कुछ कहती है, वह वस्तु चाहे बाह्य भौतिक जगत् की हो अथवा सर्वथा आध्यात्मिक और मानसिक । इसके अति- रिक्त सबसे महत्त्व की बात है भाषा का समाज-सापेक्ष होना । भाषा की उत्पत्ति किसी प्रकार हुई हो, भाषा के विकास के लिये यह कल्पना करना आवश्यक हो जाता है कि लोग एक दूसरे के कार्यों, विचारों और भानों को प्रभावित करने के लिये व्यक्त ध्वनियों का सप्रयोजन प्रयोग करते थे। जीव-विज्ञान की खोजों से सिद्ध हो चुका है कि कई पशु और पक्षी भी एक प्रकार की भाषा काम में लाते हैं। गृह-निर्माण, आहार आदि के अतिरिक्त स्वागत, हर्ष, भय आदि की सूचक ध्वनियों का भी वे व्यवहार करते देखे गए हैं। पर पशु-पक्षियों के ये ध्वनि-संकेत सर्वथा सहज और स्वाभाविक होते हैं और मनुष्यों की भाषा सहज संस्कार की उपज न होकर, सप्रयोजन होती है। मनुष्य २०