सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ५ ]

का होना कालिदास त्रिवेदी ने लिखा है, और उसका नाम यों भी बहुत सुन पड़ता है ) तथापि इसमें संदेह नहीं कि इन्होंने कुछ अन्य ग्रंथ निर्माण अवश्य किए होंगे। इस मत की पुष्टि में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं- . - (१) भूषणजी ने शिवाजी के सन् १६७४ वाले राज्याभिषेक के वर्णन में एक ही छंद लिखा हो, यह संभव नहीं। ऐसे प्रधान 'उत्सव में कविजी अवश्य ही सम्मिलित हुए होंगे अथवा घर से लौटने पर उसका पूर्ण वृत्तांत तो उन्होंने सुना ही होगा। अवश्य ही भूषण शिवाजी को सदैव से राजा और महाराज कहते थे, 'पर शिवाजी भी तो ऐसा ही करते थे। सो जब उन्होंने अपना विधिवत् शास्त्रानुकूल अभिषेक बड़ी धूम धाम से करना आवश्यक समझा, तव भूषणजी उसका वर्णन करना कैसे अनुचित मानते ? 'जान पड़ता है कि कहीं न कहीं भूषणजी ने इसका वर्णन किया ही होगा; पर जिस ग्रंथ में यह वर्णन होगा, वह अभी तक कहीं छिपा ही पड़ा हुआ प्रतीत होता है। (२) इन महाशय ने कितनी ही अन्य सुप्रसिद्ध घटनाओं का अपने विदित ग्रंथों मे समावेश नहीं किया है । सो यदि इनके अन्य ग्रंथों का प्रस्तुत होना न मानें, तो आश्चर्य्यसागर में मग्न होना पड़ेगा। इसी प्रकार उस समय के इनके कितने ही निकटस्थ प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम तक इनके विदित ग्रन्थों में नहीं मिलते । भला, शिवाजी और छत्रसाल की भेंट का हाल भूषणजी कैसे न लिखते ? अथवा तानाजी, मोरोपंत एवं गुरुवर श्रीरामदासजी