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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६५

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[ ४] उदाहरण-दोहा तें जयसिंहहिं गड़ दिये, सिव सरजा जस हेत । लीन्हें कैयो वरस में, वार न लागी देत ॥२१२।। अन्यच्च-कवित्त मनहरण वेदर' कल्यान दै परेझा' आदि कोट साहि एदिल गँवाय १ ये जयपुर के महाराजा थे और नौरंगजेद ने इन्हें "मिर्जा' को उपाधि दो थो निसले इनको "मिर्जा जयसिंह" अथवा "मिर्ज राजा" भी कहते हैं। ये सन् १६२१ ई० में गद्दी पर बैठे थे। (इनके बहुत दिनों बाद सवाई जयसिंह १६९९ में गद्दो पर के और उन्होंने जयपुर शहर दक्षाया)। मिजा जयसिंह और दिलेरखा सन् १६६५ ने शिवाजी ने लड़ने भेजे गर ! जयसिंह ने सिंहगढ़ को वेरा और दिलेर खाँ ने पुरंधर को, और शिवाजो ने जयसिंह से दद कर सन्धि को जिससे उन्हों (शिवाजी ) ने नगलों के निदने कि बीते थे, वे सद और निजामशाही वादशाहों से बोते हुए ३२ जिलों में से २० किले मिर्जा राना को में किये और शिवाजी त्वयं मार्च १६६६ में आगरे गए, पर दिसम्बर में निकल आए । सन् १६६७ में मिर्जा राना का देहांत हुआ। -ये शश (छः) हज़ारो मनन्ददार थे। २ बहमनीवंशज "दादशाहों" को राजधानी । इसे तया कल्यागी को १६५७ में औरंगजेब ने जोठा । पोछे यह शिवाजी को मिला। ३ कल्हान का सूदा कॉकग में था। पहले यह मइमदनगर के निजामशाही "दादशाहों" का था, पर सन् १६३६ में दोबार के अधिकार में आया और सन्

१६४८ में शिवाजी ने इसे वीजापुर के दादशाह अदिलशाह ( एदिल ) ने नीत लिया।

४५ ( परेशा) नाम का कोई किला या स्थान इतिहास में नहीं मिलता, हाँ