सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूपन निच्छुक नृप भए मलि भीख ले केवल भौतिला हो को ।। नसुक राशि बनेन कर, लखि ऐतिय रीति सवासिवनी भीREL प्रोडोक्ति लक्षण-दोहा जहँ तकरय अहेत को बरन्त हैं करि हेत। प्रौडोजति तालों कहत भूपन कवि विरदेत ।।२६७ ॥ बाहरण-कवित्त मनहरण नानतर वासी हंस वतन समान होत: चंदन सों इत्यो घनसार वरीक है। नारद को तारन की हाँसी में कहाँ ती बाम सरद की सुरसरी कौन पुंडरीक है ।। भूपन भनत क्यो छोरवि मैं थाह लेत फेन लपटानो ऐरावत को करी कहै ? । कवलास इस ईस सीस रजनीन वही अवनीत सिवा के न जस को सरीक है ॥२६८॥

  • २६ जानन्य विशेष मनन का विशेष माना ।

3 . शालय कवियों ने भी कहा है-दो वह है वहाँ को बहुत बड़ा होकर सकते होईन हो, झेपर हिट करना हा वाम २ दिरद (प्र.) करनेवाले ! इस दाइन में जाना , निन्दा मात्र है और इस प्रोन का निक दहा है । लिमी देवले हिन ई है इन्द्रमता में वृद्धि मार्ने