सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

.. [ ११५ ] पुनः-दोहा या पूना में मति टिकौ खान वहादुर आय । ह्याई साइस खान को दीन्हीं सिवा सिजाय ।। ३३८ ।। अत्युक्ति लक्षण-दोहा 'जहाँ सूरतादिकन की अति अधिकाई होय । ताहि कहत अति उक्ति हैं भूपन जे कविलोय ।। ३३९ ।। उदाहरण-मनहरण दंडके साहि तनै सिवराज ऐसे देत गजराज जिन्हें पाय होत कविराज वेफिकिर है। झूलत झलमलात झूलै जरबाफन की जकरे जंजीर जोर करत किरिरि हैं । भूपन भँवर भननात घन- नात घंट पग झननात मनो धन रहे घिरि हैं । जिनकी गरज सुने दिग्गज वे-आव होत मद ही के आव गड़काब होत गिरि हैं ॥ ३४०॥ आजु यहि समै महाराज सिवराज तुही जगदेव जनक 1 खान वहादुर खाँजहाँ वहादुर को कहते थे। इसे औरंगजेब ने १६७२ में दक्षिण का गवर्नर नियत किया था। इसका हाल छं. नं० ९६ में यहलोवाले के नोट में देखिए। २ इस छंद में हाथियों के जंजीर पर जोर लगाकर गरजने तथा उसके फलों का विशेप वर्णन है। ३ पवारों का बड़ा प्रसिद्ध और तेजस्वी चीर।।

  • उदात्त में धनाधिक्य का भारो कथन होता है और अत्युक्ति में शौर्यादि का ।