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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२७३

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[ १८२ ] कूरम कबंध हाड़ा तूंवर बघेला बीर प्रबल बुंदेला हूते जेते दल मानी सों। देवल गिरन लागे मूरति लै विप्र भागे नेकहू न जागे सोइ रहे रजधानी सों। सबन पुकार करी सुरन मनायवे को सुरन पुकार भारी करी विश्वधनी सों । धरम रसातल को बूड़त उबायो सिवा मारि तुरकान घोर बल्लम की अनी' सों ।।५०|| __ जोर रूसियन को है, तेग खुरासान की है, नीति इंगलैंड चीन हुन्नर महादरी । हिम्मति अमान मरदान हिन्दुवानहू की, रूम अभिमान हवसान हद नादरी । नेको अरबान सान अदब इरान त्योंहीं, क्रोध है तुरान त्यों फरांस फन्द आदरी। भूपन भनत इमि देखिये महीतल पै वीर सिरताज सिवराज की बहा- दरी ।। ५१ ॥ ___ आपस की फूट ही ते सारे हिन्दुवान टूटे, तूट्यो कुल रावन अनीति अति करते । पैठि गो पताल वलि वज्रधर ईरपाते, टूट्यो हिरन्याक्ष अभिमान चित धरते ॥ टूट्यो सिसुपाल वासुदेव जू सों वैर करि, टूटो है महिष दैत्य अधम विचरते । रामकर छुव- तही टूटो ज्यों महेस चाप, टूटी पातसाही सिवराज संग लरते ॥५२॥ चोरी रही मन मैं, ठगोरी रही रूप ही मैं, नाहीं तौ रही है एक मानिनी के मान मैं । केस में कुटिलताई नैन में चपलताई, १ नोक। २ महान, महत् मरी, मारी दरें।