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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/७५

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[ ६६ ] भाषा), छंद नंवर ३५४, ३५५, ३५६, ३५७ का वृहदंश, खोम (३६०), जंपत (१५), चकत्ता, खुमान, अमाल (७३), गारो (१८६), ऐल ( शिवा वा० नं०२), वप (शि० वा० नं० १५), इत्यादि। उपर्युक्त उदाहरणों में जहाँ केवल अङ्क लिखे हैं और ग्रंथ का नाम नहीं लिखा है, वहाँ शिवराजभूपण वाले छंदों के नंबर समझने चाहिएँ। इतने ग्रंथ और विशेप करके युद्ध वर्णन में यदि उन्होंने इतने अथवा कुछ और शब्दों का अव्यवहृत एवं विकृत रूप में समावेश किया, तो आश्चर्य की बात नहीं है, वरन् आश्चर्य तो यह है कि भूपण ने इतने कम शब्द मरोड़ कर अपना काम कैसे चला लिया। ___ यदि इस कवि के कुल शब्द गिने जायँ तो अन्य अनेक ग्रंथ रचनेवालों की अपेक्षा इसका शब्द समूह बड़ा ठहरेगा। अँग- रेजी के सुप्रसिद्ध कवि शेक्सपियर ने इंगलैंड के हर एक कवि से अधिक शब्दों का प्रयोग किया है और यह उसकी कविता का एक वड़ा गुण समझा जाता है। यही गुण भूषण में भी विद्यमान है। इनकी कविता में अनुप्रास यद्यपि बहुतायत से आए हैं, तथापि वीरताप्रधान ग्रंथों के रचयिता होने के कारण इन पर कोई दोषारोपण नहीं कर सकता। फिर इन्होंने पद्माकरजी की भाँति अनुप्रास एवं यमक का स्वाँग भी नहीं बनाया है। उदाहरण ये हैं-शिवराजभूषण में छंद नंवर १, ३८, ४२, ४८, ५६, ६८, ७३, ७७, ८३, १०१, ११०, १३०, १३३, १३४,१६१, १६२, १६६,