सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ७० ] करके उनकी सत्यप्रियता के प्रतिकूल कुछ कहना ही चाहा है । वे केवल कविता का चमत्कार दिखाने और शत्रुओं का उपहास करने के निमित्त कही गई हैं । उदाहरण-शिवराजभूपण के छंद नंबर ८९, ९०, ९३, ९४, ९६, १०५, २०९, २२८, २६३, २७०, २७६, ३२३, ३२४, व शिवावावनी के छंद नं० १३, २९, ४१ । ___ भूपणजी ने शिवावावनी के छंद नंबर १२ में अमीर औरतों के विषय में कहा है कि "किसमिस जिनको अहार" एवं "नास- पाती खाती ते बनासपाती खाती हैं"। नासपाती अथवा किसमिस का आहार कोई बड़ी बात नहीं है। या तो भूपण ने ये बातें मजाक में कही हैं या उस समय नासपाती और किस- मिस बहुमूल्य और अमीरपसंद वस्तुएँ होंगी। ___ भूपणजी ने कई जगह “गुसलखाना” का वर्णन किया है (शि भूः नं० ३४, ७९, २०४, २०९, २६५, व शि० वा० नं० १६ देखिए ) परंतु साफ साफ कहीं नहीं कहा कि गुसलखाने में क्या हुआ । यह भी कई जगह कहा गया है कि दरवार में जाकर शिवाजी ने औरंगजेब को सलाम नहीं किया (शि० भू० नं. १८६, १९८, ३०९ शि० वा० छंद नंबर १६)। एक उपन्यास में हमने यह देखा है कि औरंगजेब ने जब सुना कि शिवाजी का इरादा उसे सलाम करने का नहीं है, तो उसने फाटक में आरा- इश के कई सामान लगा कर उसे ऐसा छोटा कर दिया कि बिना सर झुकाये कोई मनुष्य उसके भीतर घुस न सके। इस पर शिवाजी ने तनकर अपना छाता इतना बाहर निकाल दिया