पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४२१

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ललितललाम

ललितललाम उदाहरण लाल बाल' अनुराग सौं रँगत रोज सब अंग । तऊ न छोड़त रावरो, रूप सॉवरो रंग ॥३३८॥ अनुगुण-लक्षण सम रुचि संगति और के, बढ़त आपनौं रंग । अनुगुन तासों कहत हैं, जे कबि बुद्धि उतंग ॥३३९।। उदाहरण बिरी अधर, अंजन नयन, मँहदी पग अरु पानि । तन कंचन के आभरन, लसत सरस छबि खानि ॥३४०।। मीलित-लक्षण एक रूप है जाति मिलि, जहाँ होत नहिं भेद । बरनत मीलित हैं तहाँ, जिनकी बानी बेद ॥३४१॥ उदाहरण अंगनि मैं चंदन चढ़ाय अंगराग सेत', सारी छीर-फेन की-सी आभा उफनाति है; राजत रुचिर रुचि मोतिन के आभरनि, कुसुम-कलित केस सोभा सरसाति है। कवि 'मतिराम' प्रान प्यारे कौं मिलन जाति, ___ करि कै मनोरथनि मृदु मुसकाति है; होति ना लखाई निसि चंद की उज्यारो मुख, _ चंद की उज्यारी तन छाहौं छपि जाति है ॥३४२॥* १ चित्त, २ नीठि परति पहिचानि, ३ चंदन कपूर अंगराज जुत अंग सेत, ४ चली। छं० नं० ३३८ भावार्थ-नायिका अपने अनुराग (लाल वर्ण) से नित्य रँगती है फिर भी आपका स्वरूप अपना काला रंग नहीं छोड़ता है।

  • देखो रसराज उदाहरण शुक्लाभिसारिका ।

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