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पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६४

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. पहाध्याय तथा ग्रामशतानां च कुर्याद्राष्ट्रस्य संग्रहम् ॥११४|| राज्य के संग्रहार्य यह उपाय (जो आगे कहते हैं) करें, क्यो कि अच्छे प्रकार सुरक्षित राष्ट्र वाला राजा सुख पूर्वक बढ़ता है ॥११॥ दो, तीन पांच, तथा सौ प्रामो के बीच में संग्रह करने बाले पुरुषो का समूह स्थापन करे अर्थात् कलक्टरी इत्यादि राष्ट्र के स्थानों का स्थापन कर ||११४॥ प्रामस्याधिपति कुर्याद्दशग्राम ति वथा । विंशतीशं शतेशं च सहस्रपसिमेव च ॥११५या अामदापासमुत्पन्नान् प्रामिकः शनकैः स्त्रयम् । शंसेद् ग्रामदशेशाय दशेशो विंशतीशिनम् ॥११६॥ विशतीशरतु तत्सर्वे शतेशाय निवेदयेत् । सिद् ग्रामशतेशस्तु सहस्रपतये स्वयम् ॥११७॥ यानि राजप्रदेयानि प्रत्यहं ग्रामवासिभिः । अन्नपानेन्धनादीनि ग्रामिकस्वान्यवाप्नुयात् ॥११८॥ एक गांव का अधिपति नियत करे वैसे ही दश गांव का और बोस का और सौ का तथा हजार का ॥११५॥ प्रामाधीश उत्पन्न हुवे ग्रामों के दोषों को श्राप धीरे से जान कर (अपने योग्य न समझे) नो दश ग्राम के अधिपति को सूचित करे. इसीप्रकार दश माम बाला पीसभामवाले को ॥११ा और वीसवाली यह सब सौ बालेका और सौ आना बारबालेको स्वयं सूचित करे ।११७। और अन पान इन्वनादि जो प्रामवामियों को प्रतिग्नि ठेने रोग हो उन को उस र ग्राम पर नियत राजपुरुष पहण करे ॥११८॥