पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/११

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अच्छा जो होगा, देखा जायगा पर अभी उन बातों के पकने में देर है, इसलिये वह पचडा अभी हम यहीं पर छोड़ते हैं।

युवा को मदिर के भीतर बुलाकर उस सावधान स्त्री ने पहिले की भाति सदरद्वार ज्यों का त्यों बद कर दिया।

युवा ने द्वार बंद होने के साथ ही घूम कर पूछा कि क्यों भई ! किवाड़ क्यों भेड़ती हो!"

स्त्री,-(मुसकुरा कर ) “छिः! डर लगता है क्या ! इतमा घबराते क्यों हैं ! हथियार तो आपके हाथ में हैं।

इतना कहती हुई वह विचित्र स्त्री वहासे खसक गई और युवा ने अपने को एक शिवालय के सभामंडप में अकेले पाया । इसके कहने की तो कोई आवश्यकता नहीं है कि युवा ने अपने सब हथियारों को भी अपने साथ लेलिया था, जिन्हें उसने पहिले फाटक के बाहर सीढ़ी पर रक्खा था।

पाठक यह जानना चाहते होंगे कि यह नवयुवक, जिसे द्वार खोलने वाली स्त्री ने महाराज का सम्बोधन दिया, कौन है! और उस भग्न मदिर मे जो दो अवलाए दीख पड़ी, जिनमें एक युवती थी और दूसरी षोड़शी; वे कौन थीं ? और वह मन्दिर किस स्थान पर अवस्थित था, तथा उस वीर युवक का उस समय रुधिररंजित - बीभत्स वेश क्यों था!

किन्तु पाठक धैर्य रक्खें, समय पाने पर सब रहस्य स्वयं प्रगट हो जायगा और कोई बात छिपी न रह जायगी। हां! अभी तो इन भेदों का रहस्योद्घाटन नहीं होसकता। अतएव जबतक इन लोगों का नाम या परिचय न मालूम हो, हम उस युवक को युवक या युवा कहकर, और उन दोनों स्त्रियों में से युवती को स्त्री था सुन्दरी कहकर, हथा षोड़शीबाला को पाला वा बालिका कहकर लिखेंगे।