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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१०८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा * .

- - स्पष्ट कहा है कि यह इतिहास ग्रन्थ है, सकता कि वैदिक साहित्यके समय जो तब ऐतिहासिक साक्षी और प्रमाणके अनेक घटनाएँ हुई, उन सबका उल्लेख आधार पर इस बातको मानने में कोई उस साहित्यमें किया ही जाना चाहिये हर्ज नहीं कि पाण्डव हो गये हैं और था ; क्योंकि ब्राह्मणादि ग्रन्थ इतिहासके भारतीय युद्ध भी हो गया है। हाँ, यदि ग्रन्थ नहीं हैं, बल्कि चे धार्मिक ग्रन्थ हैं। किसी उचित कारणसे यह प्रमाण छोड़ उनमें देवताओंकी स्तुति और यज्ञादिका देने योग्य सिद्ध हो सकता हो, तो उसे वर्णन है । उनमें प्रसङ्गानुसार किसी अवश्य छोड़ देना चाहिये । परन्तु इस राजा अथवा व्यक्तिका नाम देख पड़ता बातको सिद्ध करनेके लिये वेबरने उल्ले- है सही; पर इस बातकी कोई आवश्य- साभावका जो कारण बतलाया है, वह | कता नहीं कि यह उल्लेख किया ही जाय। काफी नहीं है। ऐसी दशामें यदि उन ग्रन्थोमें भारती- उल्लेखाभावके प्रमाणको पेश करने- युद्ध अथवा भारती-योद्धाओंका नाम की इच्छा स्वाभाविक होती है, क्योंकि यह नहीं पाया जाता, तो कोई आश्चर्यकी बात प्रमाण सचमुच बड़ा मोहक है। जब कि नहीं है। सारांश, यदि भारती-युद्ध बैदिक साहित्यमें भारती युद्धका उल्लेख : श्रथवा योद्धाओका नाम शतपथ ब्राह्मण ही नहीं है, तब इस बातको मान लेनेकी । अथवा अन्य वैदिक साहित्यमें नहीं है, भोर मनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है तो इस उल्लेखाभावके आधार पर यह कि भारती युद्ध हुआ ही नहीं । परन्तु अनुमान करना बड़ी भारी भूल है कि ऐसी दशामें हमेशा इस बातका विचार उक्त घटनाएँ हुई ही नहीं। किया जाना चाहिये कि उल्लेखकी श्राव- एक स्थानमें रमेशचन्द्र दत्तने इतना श्यकता थी या नहीं । उदाहरणार्थ, किसी कबूल किया है कि भारती-युद्धका होना ब्रन्थमें नारायणराव पेशवाका उल्लेख है, तो सम्भव है : परन्तु पाण्डवोंका होना पर उस ग्रन्थमें पानीपती लड़ाईका असम्भव है : क्योंकि पाण्डचोंकी कल्पना उल्लेख नहीं है जो नारायणराव पेशवाके ! केवल सद्गुणोंके उत्कर्षकी कल्पना मात्र पहले हो गई थी: तो क्या इस उल्लेखा- है। परन्तु यह कथन भी गलत है। यह भावसे कोई यह अनुमान कर सकेगा कि नहीं कहा जा सकता कि महाभारत में पानीपतकी लड़ाई हुई ही नहीं, अथवा पाण्डवोंका जो इतिहास है वह केवल सदाशिवराव भाऊ या जनकोजी संधिया सद्गणोंके ही वर्मनसे भरा हुआ है । उदा- नामके कोई धीर पुरुष हुए ही नहीं? हरणार्थ, पाँच भाइयोंने मिलकर एक पानीपतकी लड़ाई के बाद हज़ारों पुस्तके स्त्रीके साथ विवाह किया, यह वर्णन कुछ लिखी गई हैं । परन्तु इस बातको कोई सद्गण-वर्णन नहीं कहा जा सकता। बैदिक मावश्यकता नहीं कि उन सब ग्रन्थोंमें साहित्यके समय पार्योमे ऐसा रिवम्ज पानीपतकी लड़ाई का उल्लेख किया ही न था। वैदिक ऋषियोंने स्पष्ट कहा है जाय । हाँ, यदि उक्त ग्रन्थोंमें कोई ग्रन्थ कि जिस प्रकार यज्ञ-स्तम्भके चारों ओर मराठोंके इतिहासके सम्बन्ध हो, तो यह अनेक रशनाएँ बाँधी जा सकती हैं, उसी प्रकट है कि उसमें पानीपतकी लड़ाईका प्रकार एक पुरुषके लिये अनेक स्त्रियाँ हो नाम अवश्य पाना चाहिये । इस विचार- सकती हैं। परन्तु जिस प्रकार एक दी रिसे देखने पर यह नहीं कहा जा रशमा अनेक यूपोंसे नहीं खाँधी जासकती,