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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१४२

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महाभारतमीमांसा

8 महाभारतमीमांसा ॐ भी अपने समयकी स्थितिको देखकर पर भी यही समय निश्चित होता है। इस साफ कहा है कि धनिष्ठामें उदगयन नहीं | के मुख्य दो स्वरूप बतलाये जायेंगे । महा- होता । इसी प्रकार वेदाङ्ग ज्योतिषकार | भारतमें कथा है कि जरासन्ध एक यज्ञ का भी कथन होगा। सारांश यह है कि | करके क्षत्रियोंको बलि देनेवाला था। लोग ज्योतिष-विषयक वचनों और ग्रन्थोंको | समझते हैं कि वह कथा थोड़ी बहुत झूठा बनाना न तो सम्भव होगा और न अद्भुत और काल्पनिक है। महाभारतमें माम्य । तात्पर्य यह है कि वेदाङ्ग ज्योतिष- | | श्रीकृष्णके मुखसे कहलाया गया है कि का समय सन् ईसवीके पहले १४०० से शिव को बलि देनेके लिये तूने क्षत्रियोंको १२०० तक ही निश्चित मालुम होता है। कैदमें डाल रखा है। इस कथाका मूल- शतपथ-ब्राह्मण इससे भी पहलेका होगा, | स्वरूप क्या है ? क्या यह बिलकुल काल्प- वादका नहीं हो सकता। निक है ? इस विषयमें विचार करनेपर मालम होता है कि इसमें ऐतिहासिक शतपथ-ब्राह्मणका निश्चित समय, कमसे कम उस भागका समय जिसमेंसे सत्य है । देख पड़ता है कि इसके मूलमें पुरुषमेधकी बात है। शतपथ-ब्राह्मणके ऊपरका वाक्य लिया गया है, सन् ईसवी- से पूर्व ३००० वर्ष है। यह बात निर्विवाद एक स्थानके वर्णनसे विदित होता है कि है कि ऋग्वेद-ग्रन्थ, समग्र शतपथ- पुरुषमेध काल्पनिक नहीं है-भारत- ब्राह्मणके पहले, सम्पूर्ण हो गया था। वर्षमें किसी समय वह प्रत्यक्ष किया अर्थात्, ऋग्वेद, शतपथ-ब्राह्मणके हर एक | जाता था । कदाचित् उसका प्रचार भागसे पहले पूरा तैयार हो गया था । यहाँ थोड़ा ही रहा हो, परन्तु शतपथमें इससे ऋग्वेदका समय सन ईसवीसेपई उसका जो सूक्ष्म वर्णन किया गया है. ३२०० वर्ष मान लेने में कोई हर्ज नहीं है। उससे मालूम होता है कि वह किसी स्थूल मानसे भारतीय युद्ध ऋग्वेदके | समय प्रत्यक्ष किया जाता था। इसका दर्जा अश्वमेधसे भी बढ़कर था, और बाद १०० वर्षों में हुआ। अतएव उस युद्धका, सन् ईसवीसे पूर्व ३१०१ का, सर्व- | | इसी लिये इसका फल यह बतलाया गया मान्य समय वैदिक साहित्यके श्राधारपर है कि इस यज्ञके करनेवालेको असीम हड़प्रमाणोंसे सिद्ध होता है। राजसत्ता मिलेगी। इसकी भिन्न भिन्न विधियाँ और बलि दिये जानेवाले पुरुषोंके जरासन्ध-यज्ञ। वर्णन तथा संख्या वर्तमान समयमें भय- ङ्कर मालूम होतो है; परन्तु जान पड़ता इसके सिवा भिन्न भिन्न अन्तर्गत | है कि शतपथ ब्राह्मणके समयमें यह यक्ष प्रमाणोंसे भारतीय युद्धका समय सन् | प्रचलित था। आगे चलकर वह शीघ्र ही ईसवीसे पूर्व ३१०१ ही निश्चित होता है। बन्द हो गया होगा और अश्वमेधकी भी यह समय मेगास्थिनीज़के आधार पर, प्रवृत्ति कम हुई होगी। मालूम होता है कलियुग-आरम्भके विषयमें ज्योतिषियोंके कि भारतीय युद्धके समयमें जरासन्ध प्रमाण पर और वैदिक साहित्यके द्वारा, इस तरहका पुरुषमेध करनेवाला था और इन तीन दृढ़ प्रमाणोंसे निश्चित होता है। श्रीकृष्णने अपने उदात्त मतके अनुसार यहाँतक हमने इस बातका देख लिया कहा था कि जरासन्धको इसी कारणसे है। भारतीय परिस्थितिके स्वरूपके अाधारमारना युक्त है। इस पुरुषमेधकी बातसे