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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१५८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

सारांश यह है कि एक भी ग्रहकी पदो भी जन्म ले रहे हैं। घोड़ीसे पड़- सितिका मेल नहीं मिलता। मुख्यतः इस वाका, कुत्तीसे गीदड़का और ऊँटोसे पातको ध्यानमें रखने पर दिखाई पड़ता कुत्तोंका जन्म हो रहा है। बार बार भूक- कि ये बातें कल्पनासे ही बतलाई गई है। म्प हो रहा है। राहु और केतु एक ही यदि भारती युद्धका ब्राह्मण-कालके जगह पर आ गये हैं। गौप्रोसे रक्तकी प्रारंभमें होना सच है, तो कहना पड़ता तरह दूध निकलता है। पानी अग्निके है कि उस समय सातों ग्रहोंका ज्ञान होने समान लाल हो गया है। क्षत्रियोंके प्रति- पर भी उनकी ओर ऋषियोंका विशेष कृल तीनों नक्षत्रोंके शीर्षस्थानमें पापग्रह ध्यान न था और उनकी निश्चयात्मक बैठा है ।" इस तरहके बहुतेरे वर्णन गति भी उन्हें मालुम न थी। आर्योंको यह भीष्म पर्वके प्रारम्भमें व्यासके मुखसे देखनेका ज्ञान कुछ समयके बाद धीरे हुए हैं। वे प्रायः काल्पनिक होंगे और धीरे हुआ, कि वे ग्रह किस नक्षत्र में हैं। उत्पात-प्रन्थोसे लिये गये होंगे । उनमें बेदांग ज्योतिष-कालमें भी यह शान न बतलाई हुई ग्रहस्थिति भी काल्पनिक है। होगा । उसमें केवल सूर्य और चन्द्र- अर्थात् क्षत्रियोंके इष्ट-अनिष्ट नक्षत्रोंके सम्बन्धी गणित है-ग्रहोंके सम्बन्धमे आधार पर ग्रहोंकी स्थिति कल्पित की गई गणित नहीं है । तथापि यह सच है कि है। तात्पर्य यह है कि उनके आधार पर आगे गर्गके समयमें बहुत कुछ ज्ञान हो गणितसे ऐतिहासिक अनुमान नहीं गया था। गर्गने भिन्न भिन्न ग्रहोंके चार : निकाला जासकता। ऐसा मान लेने पर दिये हैं । गर्गके मूल ग्रन्थमें क्या था, यह भी यह प्रश्न बाकी ही रह जाता है, कि महाभारत के सरस्वती-आख्यानमें बत- सौतिने जो यह ग्रहस्थिति बतलाई है, लाया गया है। उसमें कहा गया है कि उसने उसको उसने दो दो नक्षत्रों पर कैसे कालज्ञानगति, तारोंका (ग्रहोंका) सृष्टि- बतलाया है ? यह एक स्पष्ट बात है कि संहार, दारुण और शुभकारक उत्पात : यदि उसने काल्पनिक ग्रहस्थितिका वर्णन और योगका ज्ञान प्राप्त किया था। उसके किया होगा, तो उसे भी समझदारीके नामसे आजकल जो "गर्ग संहिता" नामक साथ ही किया होगा। व्यास और कर्णके ग्रन्थ प्रचलित है, उसमें भी यही बात : भाषणों में तो विरोध है ही, परन्तु व्यासके दी हुई है। इससे अनुमान होता है कि अगले पिछले वचनोंमें भी विरोध पाया सौतिने गर्गके तत्कालीन ग्रन्थसे उन जाता है। पहले मङ्गल मघामें वक्र बत- सब दारुण उत्पानोको लेकर भारती युद्ध- लाया गया है; फिर आगे कहा गया है कि प्रसंगके सम्बन्ध लिख दिया है, जो वह पुनः पुनः वक्र होकर श्रवणका-जिस भयङ्कर प्रसङ्गसूचक समझे जाते थे। पर बृहस्पतिका आक्रमण हो चुका है- उसने वर्णन किया है कि क्षत्रियों- पूर्ण वेध कर रहा है। प्रारम्भमें बृहस्पति के अभिमानी भिन्न भिन्न नक्षत्रों पर श्रवणमें बतलाया गया है और अन्त- या तो दुष्ट ग्रह आ गये हैं, या उनपर में विशाखाके पास बतलाया गया है। उनकी दृष्टि पड़ी है। इसके साथ ही इस तरह दो दो नक्षत्रों पर ग्रहोंकी स्थिति उसने कई उत्पातोंका भी वर्णन किया है। क्यों बतलाई गई है ? इस पर मोड़कने "बाँझ स्त्रियोंको भी भयङ्कर सन्ताने हो अनुमान किया है कि दोनों नक्षत्रोंको सी हैं। दो भाँख, पाँच पैरवाले भयङ्कर ठीक मानकर एकको सायन और दुसरे-