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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१६४

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

नहीं दिखेगा। बाकी पाँच ग्रह उदित भागमें | ज्येष्ठा पर है। उसकी मुख्य स्थिति यही हो सकते हैं । मङ्गल अनुराधामें, गुरु और समझनी चाहिये कि वह अनुराधामें वक्र शनि विशाखाके पास, शुक्र उत्तरामें और था । यह योग अनिष्टकारक समझा बुध बीचमें कहा गया था। परन्तु इतनेसे जाता होगा। ही यह कहना ठीक नहीं हो सकता कि अन्तिम महत्वका वाक्य भीष्मका सात ग्रह दीप्तमान थे। घोड़ीसे कुत्तं पैदा है (अनुशासन० अ० १६७) । जब भीष्म- होने लगे, राहु केतु एक स्थानमें श्रा गये, के शरीर त्याग करनेका समय आया इत्यादि बातोंका यही अर्थ समझना और उत्तरायण श्रारम्भ हुआ, तब युधि- चाहिये कि असम्भव बातोंका उत्पात हो | |ष्टिरके उनके पास जाने पर भीष्मने गया। अथवा अन्य कोई धूमकेतु आदि कहा किः- सात महाग्रह यहाँ अभिप्रेत मानन माघोऽयंसमनुप्राप्तो मासःसौम्यो युधिष्ठिर। चाहिये। त्रिभागशेषः पक्षाऽयं शुक्लो भवितुमर्हति ॥ कर्णका वध हो जाने पर एक ऐसा अष्टपश्चाशतंरात्र्यःशयानस्याद्य मे गताः॥ ___ "मुझेबाणशय्या पर पड़े हुए आज ५० वचन है कि:- रात्रियाँ व्यतित हो चुकीं । यह माघका बृहस्पतिः संपरिवार्य रोहिणी | महीना पाया है और अब शुक्लपक्ष है। इस बभूव चन्द्रार्कसमो विशांपते। पक्षका चौथा भाग समाप्त हो गया है।" बृहस्पति विशाखाके पास है । वह इस कथनका सारांश टीकाकारने यह एक महीने में अधिकसे अधिक दो ढ़ाई अंश निकाला है कि आज माघ सुदी अष्टमी जाता है, अर्थात् पूरा एक नक्षत्र भी नहीं है। यदि मान लें कि भारती युद्ध मार्ग- चलता। जब वह विशाखामें ही था तब शीर्ष सुदी त्रयोदशीको प्रारम्भ हुश्रा, तो रोहिणीको परिवार बनाकर कैसे रहेगा? भीम मार्गशीर्ष बदी = को बाणविद्ध हो- सम्भव है कि वह चंद्रमा सदृश होगा कर गिर पड़े और तबसे अट्ठावन रात्रियाँ पर वह सूर्य सदृश कैसे होगा ? यह भी गिनने पर माघ बदी अष्टमी आती है न एक खासी समस्या है । सम्भव है कि कि माघ सुदी। आजकल माघ सुदी गुरुने दृष्टिके द्वारा विशाखासे रोहिणीका कमीको ही भीष्माएमी मानते हैं। उस बेध किया; इसलिये कहनेका मतलब यह अष्टमीमें १५ दिन घटा देनेसे ४३ रात्रियाँ होगा कि वह भी चन्द्रमा-सूर्य के समान बचती हैं। १६ घटानेसे ४२ बचेंगी। अपकारी हो गया । शल्य पर्वके ग्यारहवं टीकाकारने यहाँके पदको "अष्टपंच- अध्यायमें एक वाक्य इस तरहका है: अशतं" बनाकर, सौमें अट्ठावन कम- भृगुसूनुधरापुत्रौ शशिजेन समन्वितौ ॥ का अर्थ लगाकर, ४२ रात्रि होना बत- इसमें कही हुई बात सम्भव है। शुक्र लाया है। परन्तु अनुशासन पर्वमें उसी और बुध सूर्य के पास रहते हैं। सूर्य एक अध्यायमें इसके विरुद्ध एक स्पष्ट वचन महीने में ज्येष्टाको छोड़कर पूर्वाषाढ़ा पर इसीके पहले है । वह यह है कि भीमसे चला गया होगा । मंगल भी सरल होकर अाज्ञा पाकर युधिष्ठिर हस्तिनापुर चला अनुराधासे ज्येष्ठामें आ गया होगा और गया और वहाँ उसने पचास रात्रियाँ यहाँ तीनौका मेल हो जाना सम्भव है। बिताईं: सूर्यको उत्तरकी ओर पलटा परन्तु यह मामना चाहिये कि मंगल हुआ देखकर अर्थात् उसरायणका प्रारम्भ