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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१७०

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महाभारतमीमांसा

® महाभारतमीमांसा सूर्यवंशी क्षत्रिय,और उनके गुरु वसिष्ट थे: हिन्दुस्तानमें पाये । पात होता है कि वे और दूसरी ओर समस्त चन्द्रवंशी राजा घाटियोंसे आकर, सरस्वतीके किनारे, थे। इस युद्धका भारती युद्ध से सम्बन्ध पहलेसे आबाद सूर्यवंशी आर्योंके राज्यमें नहीं है। ऋग्वेदका युद्ध भरत-परके बीच घुस पड़े। ऋग्वेद-कालमें उन्होंने पजाब था और भारती युद्ध कुरु-पाञ्चालके बीच। पर पश्चिमकी ओर और अयोध्याकी भोर ये दोनों एक पूरके ही वंशज थे। ऋग्वेद- पूर्वमें चढ़ाइयाँ को। परन्तु वे सफल न में पूरुका तो उल्लेख है, परन्तु कुरुका कहीं हुए। इस कारण वे लोग सरस्वतीके पता नहीं है। हम पहले लिख आये हैं कि किनारसे गङ्गा-यमुनाके किनारे किनारे भारती युद्ध ऋग्वेदके पश्चात् हुअा। अब दक्षिणकी तरफ़ फैल गये। संहिता और यह देखना चाहिये कि कुरु और पाञ्चाल- ब्राह्मणके वर्णनसे उनके इतिहासका ऐसा के विषयमें और उनके पूर्वजोंके सम्बन्धमें ही क्रम देख पड़ता है। और वर्तमान वेदमें क्या पता लगता है। हिन्दुस्थानियोंकी परिस्थितिसे भी यही सिद्ध होता है। प्राचीन इतिहास और चन्द्रवंशी आर्य। | वंशको सिद्ध करनेके लिए इन दिनों भाषा- चन्द्रवंशका मूल पुरुष महाभारत- शास्त्र और शीर्षमापनशास्त्र, इन्हीं दो से पुरूरवा सिद्ध होता है । इससे पहलेके शास्त्रोंसे सहायता ली जाती है । इन दोनों चन्द्र और बुधको हम छोड़ देते हैं । पुरू- शास्त्रों के सिद्धान्त भी इन चन्द्रवंशियोंके रवाकी माता इला थी। हिमालयके उत्तर उल्लिखित इतिहासके प्रमाणके लिए अनु- भोर जो वर्ष है, उसे इलावर्ष कहते हैं। कृल हैं। डाकर ग्रियर्सनने वर्तमान हिन्दी- इससे शात होता है कि पहले ये लोग भाषाओका अभ्यास किया है। उनके हिमालयके उत्तरमें रहे होंगे। ऋग्वेदमें सिद्धान्तके आधार पर, सन् १९११ की पुरुरवा और अप्सरा उर्वशीका वर्णन मर्दुमशुमारीकी रिपोर्टमें, इस तौर पर बहुत है । जान पड़ता है कि यह हिमा लिखा गया है:-"हिन्दुस्थानकी हिन्दी लयमें ही था । पुरूरवाके बाद आयु और आर्यभाषा (संस्कृतोत्पन्न) को आर्योंकी दो नहुषका नाम है। ऋग्वेदमें इनका भी टोलियाँ ले आई। पहलीटोली जब उत्तरी हिन्दुस्थानके मैदानमें फैल चुकी, तब राजा हो गया है। ऋग्वेदमें इसका वर्णन दूसरी टोली बीचमें ही घुस पड़ी और है । यह अपने वंशका मुखिया था। अम्बालेसे लेकर दक्षिणमें जबलपुर- ऋग्वेदमें इसका नाम दनु के साथ आया काठियावाड़तक फैलती गई । आजकलके है। इसने शुक्रकी बेटी देवयानी और | पञ्जाब-राजपूताना और अवधकी हिन्दी असुरकन्या शर्मिष्ठासे विवाह किया था। भाषाका वर्ग भिन्न हो जाता है और वृषपर्वा असुरके समीप ही ययातिका पश्चिमी हिन्दी अर्थात् अम्बाला-दिल्लीसे राज्य रहा होगा । ये दोनों स्त्रियाँ हिमा- लेकर मथुरा वगैरह और जबलपुरतक लयके उस तरफ़की अर्थात् पारसियोंकी-एक भिन्न वर्ग है; इसकी शाखा काठिया- असुरोंकी बेटियाँ थीं। यह कथा ऋग्वेदमें वाड़में गुजराती है।" इस दूसरे प्रान्तको नहीं, महाभारतमें है । पहले कहा ही हिन्दुस्थानका मध्यदेश कहा जा सकेगा। गया है कि इनके पाँच पुत्र थे और वे और इसी मध्यदेशमें चन्द्रवंशी क्षत्रियोंकी ऋग्वेदमें प्रसिद्ध हैं । वही पाँच पुत्र पहले प्रावादी और वृद्धि हुई । ऋग्वेदसे लेकर