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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२१४

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महाभारतमीमांसा
  1. महाभारतमीमांसा

शुश्रुषा कगनेके लिये और इस प्रेमसे नियम था कि प्रत्येक गृहस्थाश्रमी ब्राह्मण भी किया कि हम सब एक देशमें बसते अग्नि स्थापित करके रोज उसकी पूजा और हैं। हम ज़रा विस्तारसे देखेंगे कि भिन्न होम करे । वैदिक कालमें प्रत्येक ब्राह्मण भिन्न मुख्य और सङ्कर वर्णों के कौन अपने अपने घर अग्नि स्थापित कर होम- कौनसे व्यवसाय थे और फिर हर एकके हवन किया करता था। कैकेय उपाख्यान व्यवसायका अलग विचार करेंगे। (शान्ति पर्व अ० ७६) में कैकेय राजाने कहा है कि- "मेरे राज्यमें ऐसा एक भी ब्राह्मणोंके व्यवसाय । ब्राह्मण नहीं जो विद्वान् न हो, जिसने ब्राह्मणोंका श्राद्य कर्त्तव्य था अध्य- अग्न्याधान न किया हो अथवा जो यज्ञशील पन करना। वेदोका अध्ययन करके उनकी न हो।" पूर्वकालमें अग्नि-स्थापन करके रक्षा करनेका कठिन काम उन्होंने स्वीकार यज्ञ करना गृहस्थाश्रमी ब्राह्मणका मुख्य किया था। यह काम उनकी पवित्रता कर्तव्य माना जाता था। याजन अर्थात् और बड़प्पनके लिये कारणीभूत हो गया जब क्षत्रिय और वैश्य यज्ञ करें तब था। महाभारतमें स्थान स्थान पर यह कहा ऋत्विजका कार्य ब्राह्मण करें । क्षत्रियोंको गया है कि वेदाध्ययन और सदाचारमे ही। ऋत्विज्य करनकी मनाही थी। विद्वान उनका सारा कर्त्तव्य था। वेदोका अध्ययन ब्राह्मणों के निर्वाहके लिये यह समाज- करनेकी स्वाधीनता यद्यपि तीनों वीको व्यवस्था थी। इसी प्रकार ब्राह्मणको दान थी, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि ब्राह्मणोंने और प्रनिग्रहका अधिकार था। प्रतिग्रह उस कामको उत्तम रीतिसे किया । वेदोंके अर्थात् दान लेना ब्राह्मणोंका विशेष साथ साथ अन्य विद्याओंका भी अध्ययन कर्तव्य था, यानी दान लेनेका अधिकार ब्राह्मणोंको करना पड़ता था। क्योंकि ब्राह्मणोंके सिवा औरोको न था। ब्राह्मण अध्ययनका काम ब्राह्मणों के विशेष कर्त्तव्य- लोग वेदाध्ययन करनेमें उलझे रहते थे. मेंथा। ब्राह्मण-गुरु सभी वर्गों के अध्यापक इस कारण वे अपने निर्वाहकी ओर ध्यान थे। इससे प्रकट है कि भिन्न भिन्न वर्गों के न दे सकते थे । इसलिये उन्हें प्रतिग्रहका भिन्न भिन्न व्यवसायोंके लिये आवश्यक अधिकार दिया गया था। समाजमें जो विद्याएँ ब्राह्मणांको सीम्वनी पड़ती थीं। दान-धर्म होता रहता था, उसमे ब्राह्मणों- सारांश यह कि विद्यार्जन करने और ! को ही लाभ होता था। इस प्रकार विद्या सिखानेका सबसे बढ़कर कठिन ब्राह्मणोंके तीन कर्तव्य और तीन ही अधि- काम ब्राह्मणोंने स्वीकार कर लिया था। कार थे। वेद पढ़ना, अग्नि-स्थापन करना अर्थात् ब्राह्मणोंके भरण-पोषणका बोझ और यथाशक्ति दान करना ब्राह्मणोंका समाजके सब लोगों पर था । अध्ययन कर्तव्य था, और अध्यापन, याजन तथा और अध्यापनका काम ले लेने पर अपनी प्रतिग्रह करना यह उनका विशेष अधि- गुज़र करनेकी ओर उनका ध्यान जा न | कार था। इन तीनों अधिकारोंके द्वारा सकता था। इस कारण ब्राह्मणोंकी गृहस्थी- उन्हें द्रव्य-प्राप्ति हो जाती जिससे गुज़र का खर्च चलानेका बोझ लोगों पर, विशे. होती रहती थी। अब महत्त्वका प्रश्न यह षतः समाज पर, था। है कि उक्त वर्णन निरा काल्पनिक है ___ ब्राह्मणोंका दूसरा काम था यजन और अथवा ऐतिहासिक । वर्ण-विभागके याजन । यजन यानी यज्ञ । पूर्व कालमें यह वर्षनमें सदा महाभारतमें यह वर्णन