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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२५७

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  • विवाह-संस्था।

-- - - - इसले उच्च है आसुर, अर्थात् लड़कीको महाभारतके अनेक उदाहरणोंसे कहा जा मोल लेना । उससे भी श्रेष्ठ गान्धर्ष अर्थात् सकता है कि पूर्व समयमें इस प्रकारकी लड़कीकी इच्छासे विवाह करना है। इससे रीति थी। वर्तमान कालकी जो विवाह- श्रेष्ट क्षात्र अर्थात् वह विवाह है जिसमें विधि है उसके वाग्दानके आधार पर प्रण जीतनेवालेको लड़कीका बाप लड़की निश्चयसे कहा जा सकता है कि घर दे। सबसे श्रेष्ठ ब्राह्म है जिसे सत्कार- कन्यार्थी होकर लड़कीके पितासे उसकी पूर्वक कन्याका दान कहना प्रयुक्त नहीं है।' कन्या माँगे । किन्त महाभारतमें एक इसका विस्तृत विवेचन आगे होगा। स्थान, पर स्पष्ट कह दिया गया है कि माँगनेके लिये क्षत्रिय कभी न आयगा । ब्राह्म, चात्र और गान्धर्व ।। आगे इसका उल्लेख मिलेगा । अतएव सब वर्गों में श्रेष्ठ हैं ब्राह्मण: इस कारण यह बात निश्चयपूर्वक नहीं कही जा ग्राह्मणों के लिये पहला, ब्राह्म विवाह, योग्य । सकती कि विवाहके इस भेदका नाम कहा गया है। अनु० पर्वके ४४ वे अध्याय- क्षात्र कैसे हो गया । क्षत्रियों में प्रण लगा- में लिखा है कि कन्याका पिता, वरको कर विवाह करनेकी जो प्रथा थी, उसका बुलाकर, सत्कारपूर्वक धनदानादिसे अन्तर्भाव इन पाँच भेदोंमें कहीं नहीं अनुकूल करके उसे कन्या दे। आजकल होता । हमागे समझमें तात्र विवाह भी अधिकांश ऊँची जातियोंमें यही रीति उसीको कहना चाहिये जिसमें लड़कीका प्रचलित है । कन्याके पिताको इसमें पिता कहे कि जो क्षत्रिय अथवा ब्राह्मण घरकी प्रार्थना करनी होती है और धन-अमुक बाज़ी जीत लेगा अथवा अमुक दान आदिके द्वारा उसे सन्तुष्ट करना शक्ति या वीरताका काम करेगा, मैं उसे पड़ता है। जान पड़ता है कि महाभारतके अपनी बेटी व्याह दूंगा । इस प्रकार शर्त समय ब्राह्मण लोगोंमें यही विवाह प्रच- ' बदना और तदनुसार जीतनेवालेको लित था और इसी कारण इस भेदका। बेटी ब्याहना क्षात्र विवाह है। द्रौपदीके नाम ब्राह्मविवाह पड़ गया होगा। विवाहमें बाज़ी लगाई गई थी। इससे सिद्ध विवाहका दूसरा भेद क्षात्र कहा गया है: है कि भारत-कालमें ऐसे विवाह हुआ किन्तु यहाँ पर इस बातका खुलासा करते थे। सीताके विवाहमें भी धनुष नहीं किया गया कि यह होता किस तरह तोड़नेकी शर्त प्रसिद्ध ही है । मित्रविन्दा है। बहुत करके इस ढंगका विवाह क्षत्रि- नामक क्षत्रिय कन्याको, इसी ढंगकी, योमें ही होता रहा होगा जिससे बाज़ीमें श्रीकृष्ण जीत लाये थे। इस इसका नाम क्षात्र रखा गया । हाँ, यह प्रकारके विवाह कुछ पुराने जमाने में ही कह दिया है कि यह विवाह ब्राह्मण और न हुआ करते थे: किन्तु महाभारतके क्षत्रिय दोनोंके लिये विहित है। धन समयतक भी इस प्रकारके प्रण-वाले आदिसे वरकी पूजा करनेकीरीति ब्राह्मण विवाह होते थे। पञ्जाबके कुछ लोगोंके और क्षत्रिय दोनोंमें एकसी रही होगी। सम्बन्धमें यह बात सिकन्दरके समय आये तब, ब्राह्म और क्षात्र विवाहोंके भेदकोहए यनानी इतिहास-कागेंने लिख रखी अलगाना कठिन है। हमारी रायसे इस है। अर्थात् इसके कारण क्षत्रियों और विवाहमें वरकी अोरसे कन्याके बापकी ब्राह्मणोंमें शक्ति एवं धनुर्विद्याकी स्पर्धा प्रार्थना करनेको जानेकी प्रथा रही होगी। उत्पन्न हो जाती होगी और भारतीय