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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२८७

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  • सामाजिक परिस्थिति-अन्न । ®

- - % 3D नामसे ही महाभारतमें वर्णित हैं। टीका- नियम बतलाये गये हैं उनको यहाँ उद्धृत कारने वर्णन किया है कि शक्कर, मूंग और करना ठीक होगा। "राजाका अन्न तेजको सोठ द्वारा ये पदार्थ प्रस्तुत किये जाते हरण करना है। शुद्रका अन्न ब्रह्म-वर्चसको थे। गुजराती भाषामें खाण्डव = शक्कर हरण करता है और सुनारका अन्न तथा (और हिन्दीमें भी खाँड [खाण्डव ] = | ऐसी स्त्रीका जिसके कि पति और पुत्र न शक्कर) शब्द प्रसिद्ध है। पर रागका अर्थ हो, श्रायु हरण करता है। व्याजसे गुज़र नहीं बतलाया जा सकता। मीठी चीजें करनेवालोंका अन्न विष्ठा है और वेश्या- बनानेवाले थे रागखाण्डविक और शाक-का अन शुक्र है । जारके सहवासको भाजी, कढ़ी, रायते श्रादि तैयार करते थे सहन करनेवाले और स्त्रीजित् लोगोंका सूपकार । सूप शब्दसे दालका बोध होता भी सब नरहका अन्न शुक्र ही है। जिस है। प्रारालिक लोग मांस पकाते होंगे। ब्राह्मणने यमदीक्षा ग्रहण कर ली हो अस्तु: भन्य पदार्थोके अतिरिक्त तरह उसका, कृपणका, यश-कर्म विक्रय करने तरहके पेय-अर्थात् पीने योग्य पनले वालेका, बढ़ईगीरी करनेवालेका, चमड़ा पक्कान्न खीर, रबड़ी श्रादि-बनाये जाते काटनेवालेका और धोबीका काम थे। किन्तु ये पेय कौन कौनस थे, इसका करनेवालेका अन्न न म्बाना चाहिए । वर्णन कहीं नहीं मिलता । यह तो व्यभिचारिणीका, वैद्यका, प्रजा-पालन निर्विवाद है कि ये पेय बहुधा मीठ होने पर नियुक्त अधिकारीका, जन-समूह थे। धृतराष्टके भोजनमें वर्णन है- का, प्रामका और ऐसे लोगोंका जिन मैरेयमत्स्यमांसानि पातकानि मधूनि च ।। पर लोकापवाद हो, अन्न भक्षण न चित्रान्भन्यविकारांश्चचक्रस्तस्ययथा परा॥ करना चाहिए।रंगरेजका.नियोंकी कमाई (आश्रमवासी पर्व अध्याय १) खानेवालोंका, बड़े भाईसे पहले विवाह दान किये जानेवाले श्राहारमें अपूप करनेवालेका, स्तुतिपाठकका और घृत- और मादकोंका वर्णन पाया जाता है। वेत्ताका अन्न न खाना चाहिए । बायें यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि भोजन- हाथसे लिया हुश्रा, बुसा हुआ, बासी, की समस्त चीज़ोंमें घृत श्रेष्ठ था। श्राज- मद्यसे छुआया हुआ, जूठा, और किसी- कलका वाक्य-"आयुरेव घृतम्" प्रसिद्ध ' को न देकर विशेष व्यक्तिके लिये रखा ही है। परन्तु भारतमें 'घृतं श्रेयो उद्द- हुअा अन्न न खाना चाहिए । गन्ना, शाक, श्वितः वचन पाया है। अर्थात् यह उदा- सत्तू, श्राटा और दधिमिश्रित सत्तसे बन हरण है कि छाँछ (उदश्चि) की अपेक्षा घृत हुए पदार्थ, यदि बहुत दिनतक रखे श्रेयस्कर है। इस प्रकार महाभारतमें जो रहें तो, न खाने चाहिएँ । दूध, खीर, कुछ थोड़ासा उल्लेख प्रसङ्गके अनुसार खिचड़ी, मांस, बड़े अथवा अपूप (पूना) आया है, उसके आधार पर विचार किया यदि बिना शास्त्रोक्त कारणके ही तैयार गया कि महाभारतके समय भारती लोग किये गये हों तो गृहस्थाश्रमी ब्राह्मणको क्या खाते थे। अब भोजनके कुछ विशेष भक्षण या प्राशन भी न करना चाहिए। नियमोंको देखना है। मनुष्य और घरके देवताका पूजन करके भोजनके नियम। गृस्थाश्रमीको भोजन करना चाहिए । दस दिनसे पूर्व उन लोगोंका भी पदार्थ खाने-पीने सम्बन्धमे जो कुछ विशेष । न खाना चाहिए जिनके यहाँ किसीकी