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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३१८

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

किया गया है कि अच्छी रीतियाँ कौन हैं; निर्लज्जताके साथ, उसे प्राप्त करने में और अवनति होने पर कौनसी बुरी आनन्द मानते थे। निन्दनीय काम करके रीतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। यहाँ उसका जो लोग बहुत धन संग्रह करते थे संक्षिप्त अवतरण दिया जाता है । “पहले उन्हें प्रिय अँचने लगे। रातको बेज़ोर दानवतक दान, अध्ययन और होम-ज़ोरसे बोलने लगे। पुत्र तो पिताकी हवन करके देवता, अतिथि तथा पितरों- और स्त्रियाँ पतिकी आज्ञाके बाहर बर्ताव का पूजन किया करते थे । घरोको खूब करते लगी। अनार्य लोग प्रायोकी साफ पाक रखते थे। इन्द्रियोंको धशमें | आमाके बाहर व्यवहार करने लगे। माँ, रखते ओर सत्य भाषण करते थे। बाप, वृद्ध, अतिथि और गुरुका-पूज्य किसीसे मत्सर अथवा ईर्ष्या न करते थे। समझकर-आदर न किया जाता था। अपनी स्त्रियों, पुत्रों और परिवारका पोषण ' बालकोंका पोषण करना छोड़ दिया करते थे। क्रोधके अधीन न होते थे। गया । बलि और भिक्षाका दान किये पराये दुःखसे दुखी होते थे । सेवक और बिना भोजन किया जाता था। देवताओं- अमात्यको सन्तुष्ट रखते थे। प्रिय भाषण का यक्ष न किया जाता था: पितरों और करते थे । योग्यतानुसार सबका मान अतिथियोंको अन्नभेसे अवशेष न दिया करते थे । उपवास और तपकी ओर जाता था । रसोई बनानेवाला पवित्रता स्वभावसे ही उनकी प्रवृत्ति थी । प्रातः- न रखता था । तैयार किया हुआ भोजन कालके समय कोई सोता न था । सवेरे ' भली भाँति ढाँक-मूंदकर न रखा जाता मङ्गलकारक वस्तुओंको देखकर, ब्राह्मणों- था। दूध बिना ढंका ही रखा रहता की पूजा करते थे । श्राधी गत नीदमें था। बिना हाथ धोये ही घो छू लिया बीतती थी। दिनको कोई सोता न था। : जाता था। काक और मूषक आदि प्राणो दीनों, वृद्धों, दुर्यलो, गेगियों और स्त्रियों । खाये जाने लगे । दीवार और घर पर सदैव दया की जाती और उन्हें श्राम- विश्वस्त भले ही होने लगें, पर वे लीपेन दनीका हिस्सा दिया जाता था । बड़े. ' जाते थे। बँधे हुए जानवरोंको दाना- बूढोंकी सेवा की जाती थी।" इत्यादि चाग या पानी न दिया जाता था। छोटे अच्छे प्राचरणोंका वर्णन कर चुकने पर छोटे बच्चे भले ही मुँह ताका करें, तथापि कहा गया है कि देत्यों में विपरीत काल खानके पदार्थों को आप स्वयं खा जाते हो गया : ये गुण पहलेसे विपरीत हो थे-नौकरोंको भी हिस्सा न देते थे। गये । तब, उनमेंसे धर्म निकल गया। दिन-रात उनके बीच कलह होता रहता "उस समय सभ्य पुरुष और वृद्ध था। निकृष्ट लोगोंने श्रेष्ठोंकी सेवा करना लोग पुरानी बातें बतलाने लगते । छोड़सा दिया। पवित्रता लुप्त हो गई। अर्थात् तब और लोग उनका उपहास वेदवेत्ताओंका और एक भी ऋचा न करते तथा उनके श्रेष्ठ गुणों पर मत्सर जाननेवाले ब्राह्मणों का मानापमान एक करते थे। बड़े-बूढ़ोंके आने पर, पहलेकी : हीसा होने लगा। दासियाँ दुराचारिणी तरह, प्रत्युत्थान देकर और नमस्कार बन गई और वे हार, अलङ्कार तथा वेष. करके उनका आदर-सत्कार न किया को इस ढंगसे धारण करने लगी जो कि जाता था । जिन लोगोंको सेवक न होना दुराचारके लिए फबे । उच्च वर्णमें माहिए वे भी संघकपनको प्राप्त करक, व्यापार-उद्योग करनेवाले लोग देख