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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३२

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

तीन नाम है और यह बात इस ग्रन्थसे क्रोधका तू वर्मन कर" (et. Achilles' ही स्पष्ट प्रकट होती है। श्रादि पर्वमें | wrath to Greece oh ! heavenly तथा अन्तिम पर्वमें कहा है कि "जयो goddess sing. ) इस वाक्यमें कविने नामेतिहासोऽयम्' अर्थात् मूल ग्रन्थ तीन बातोंका उल्लेख किया है-अर्थात् ऐतिहासिक है और उसका नाम 'जय काव्य-नायक एकीलीज़, काव्य-विषय था। इसी ग्रन्थको आगे चलकर 'भारत' उसका क्रोध, और वाक्देवीका स्मरण । नाम प्राप्त हो गया और जब उसका इसी प्रकार हमारे प्राचीन महाकवि विस्तार बहुत बढ़ गया तो उसे 'महा व्यासजीने भी अपने नमन-विषयक श्लोकमें भारत' कहने लगे। ये तीन नाम भिन्न | इन तीन बातोंका ही समावेश किया है- भिन्न तीन कर्तारोकी कृतिके लिये भली अर्थात् काव्य-नायक नर-नारायण (अर्जुन भाँति उपयुक्त हैं: अर्थात् व्यासजीके | और श्रीकृष्ण), काव्य-विषय उनकी जय, प्रन्थको जय, वैशम्पायनके ग्रन्थको भारत और वाक्देवीका स्मरण । इससे प्रतीत और सौतिके ग्रन्थको महाभारत कह | होता है कि नमनका यह श्लोक व्यास- सकते हैं। यह मान लेना युक्ति- जीका ही है और उनके ग्रन्थका नाम "जय" सङ्गत जान पड़ता है कि जयसे पाण्डवों- था। अब यह देखना चाहिये कि वैशं- की विजयका अर्थ सूचित होता है और पायनके अन्थको "भारत" नाम कैसे प्राप्त इसी नामका मूल इतिहास-ग्रन्थ होगा। हुआ । इस ग्रन्थमे ग्रह उल्लेख पाया जाता इसी प्रन्थका आदि नमन प्रसिद्ध है कि व्यासजीने वैशंपायन श्रादि पाँच 'नारायणं नमस्कृत्य' श्लोकम उल्लेख शिष्योंको अपना ग्रन्थ पढ़ाया और उन है । निस्सन्देह यह श्लोक व्यासजी- | लोगोंने भारत-संहिताकापठन किया: यहाँ का ही है और इसी लिये हमारी राय है तक कि प्रत्येक शिष्यने अपनी अपनी कि इसमें पहलेपहल व्यासजीका नाम निराली संहिता बनाई । ऐसी अवस्थामें न होगा। कुछ लोग इस श्लोकका यह वैशंपायनके ग्रन्थको "भारत" नाम स्व- पाठान्तर मानते हैं.-"देवी सरस्वती भावतः प्राप्त होता है। अब यह बात भी व्यासं ततो जयमुदीरयेत्” परन्तु है कि सौतिके एक लाख श्लोकवाले | स्वाभाविक और युक्ति-संगत जान पड़ती यह पाठ पीछेसे बना हुआ जान पड़ता बृहत् ग्रन्थको महाभारत नाम प्राप्त है । "देवी सरस्वतीं चैव” यही पाठ | हुआ होगा । जान पड़ता है कि भारत उचित जान पड़ता है और व्याकरणकी और महाभारत नामक भिन्न भिन्न ग्रन्थ दृष्टिसे भी 'चैव' पदकी ही आवश्यकता एक ही समयमें प्रचलित थे। सुमंतु, वैश- है। इसके सिवा, इस नमनके श्लोकमें पायन, पैल आदिका उल्लेख करते समय महाकविकी कुशलता भी देख पड़ती है आश्वलायनके एक सूत्र (आ. गृ. ३. ४. और इसी लिये कहना पड़ता है कि यह ४) में भिन्न भिन्न नाम लेकर "भारत श्लोक व्यासजीका ही है और इसमें | महाभारताचार्याः" कहा है। इससे अनु- उन्होंने अपना नाम नमनके लिये न लिखा | मान होता है कि वैशंपायनादि ऋषियों- होगा । ग्रीक कविशिरोमणि होमरने के लिये भारताचार्यकी उपाधि प्रचलित अपने इलियड नामक महाकाव्यके प्रारम्भ थी औरभारत तथा महाभारतनामक भिन्न में कहा है-“हे वादेवी. एकीलीजके भिन्न ग्रन्थ एकही समय में प्रचलित थे।