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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३२९

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  • गजकीय परिस्थिति।

प्रत्यक्ष ईश्वर या ब्रह्माकी अाशाका ही उक्त कथासे यह भी अनुमान निक- प्राधार है। ये पाशाएँ बृहस्पनिके दगड- लता है कि जो राजा धर्मशास्त्रके अनु- नीति-शास्त्रमें वर्णित हैं और श्रुति-स्मृति . सार प्रजाका परिपालन न करे, उसे प्रादि ग्रन्थों में प्रतिपादित हैं। इन प्राज्ञा-अलग कर देनेका अधिकार ऋषियोंको ओंको बदलनेका या नई अाशात्राको प्रका- ' था । प्राचीन कथा है कि ऋषियोंने घेन शिन करनेका अधिकार गजा लोगोंको गजाको मार डाला था। अब यह देखना नहीं है। वर्तमान समयमै गजसत्ताका जो चाहिए कि ऐसे कुछ और उदाहरण भी प्रधान अंग प्रसिद्ध है वह हिन्दुस्थानके महाभारतमें हैं या नहीं। परन्तु उस प्राचीन गजाओंका न था। उस समयके समय यह कल्पना अवश्य थी कि राज्य राज्यों में, आजकलकी नाई, लेजिस्लेटिव करनेका अधिकार गजवंशको ही है, कौन्सिल न थीं। नये अपराध या नये क्योंकि वेन गजाकी जाँघसे नया पुत्र दण्ड उत्पन्न करनेका राजसत्ताको अधि- । उत्पन्न करके उसे राजा बनाया गया था। कार न था। वारिमौके सम्बन्धम जो जहाँ यह कल्पना होती है कि राजसमा पद्धति धर्मशास्त्रमें बतलाई गई है उसे ईश्वरदत्त है, वहाँ राजवंशका ही आदर राजा बदल नहीं सकते थे। वे ज़मीनका होता है । यह बात पाश्चात्य तथा प्राच्य महसूल बढ़ा नहीं सकते थे। गजा लोगों- देशोंके अनेक उदाहरणांसे सिद्ध होमकती का यही काम था कि वे धर्मशास्त्र या है। इसी कारण हिन्दुस्थान में प्राचीन काल- नीतिशास्त्रमें बतलाये हुए नियमोंका परि- से भारत-कालतक अनेक राजवंश बने पालन समबुद्धिसे नथा निष्पक्ष होकर रहे । जब बौद्ध धर्मके प्रचारमे धर्मशान- करें। यदि धर्मशास्त्रकी प्राशाके समझने के सम्बन्धमें लोगोंका आदर-भाव घट में कुछ सन्देह हो, तो ऐसी सभाकी गया, तब गजसत्ता पूरी अनियन्त्रित हो गय ली जाय जिसमें धर्म-शास्त्रवेत्ता' गई और साथ ही साथ राजवंशका श्रादर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सम्मिलित हो: ' भी घट गया । परिणाम यह हुआ कि जो और फिर कायदेका अर्थ समझकर चाहे सो गजा बनने लगा और मनमाना उसका परिपालन किया जाय। हाँ. यह राज्य करने लगा। यहाँ इतना अवश्य कह बात सच है कि राजकीय सत्ता-सम्बन्धी देना चाहिए कि यह परिस्थिति महाभारत- ऐसे सिद्धान्तोंसे उन्नतिमें थोडासा प्रतिः कालके लगभग उत्पन्न हुई थी जो उसके बन्ध होता होगा। परन्तु स्मरण रहे कि बाद विशेष रूपमे बढ़ती चली गई। इस व्यवस्थाके कारण राजाओंके अनि- राजा और प्रजाके बीच यन्त्रित और स्वेच्छाचारी व्यवहारको कायदेका स्वरूप कभी नहीं मिल सकता इकरारकी कल्पना। और इस व्यवस्थासे समाजकी स्थितिको गजसत्ताकी मूल उत्पनि कैसे हुई ? चिरस्थायी स्वरूप प्राप्त हो जाता है। यह और, उस मनाके साथ ही साथ न्याया- कहनेमें कोई हर्ज नहीं कि इस प्रकार नुसार गज्य करने की जवाबदही राजा समाजकी स्थिरता सिद्ध हो जानेके लोगों पर कैसे आ पड़ी? इन प्रश्नों के कारण, प्राचीन कालमें, हिन्दुस्थानके । सम्बन्धमें एक और सिद्धान्त महाभारत- राज्य अनियन्त्रित गजमत्ताके अधीन में पाया जाता है। इस सिद्धान्तमै यह होने पर भी बहुत सुखी थे। कल्पना की गई है कि गजा और प्रजाके