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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४०८

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महाभारतमीमांसा

३८२ & महाभारतमीमांसा बारहवाँ प्रकरण । वर्णनसे जो भूगोलिक ज्ञान अथवा कल्पना आर्योंकी जानी जाती है, उसका हम यहाँ पर विस्तारसे वर्णन करते हैं । भूगोलिक ज्ञान । जम्बूद्वीपके वर्ष । अब इस प्रकरणमें हम इस विषयका। पहले हम इस बातका विचार करेंगे वर्णन करेंगे कि, महाभारत-कालमें कि, उस समय पृथ्वीके सम्बन्धमें क्या भारतवर्षके लोगोंका भूगोलिक ज्ञान कल्पना थी । यह वर्णन मुख्यतः भीष्म- कितना था। महाभारतके अनेक वर्णनोंसे पर्वके अध्याय ५-६-७-८ में है। प्राचीन हमें यह मालूम होता है कि, इस कालमें, कालमें यह कल्पना थी कि पृथ्वीके सात अर्थात् ई० सन् पूर्व लगभग २५० वर्ष, द्वीप हैं । सातो द्वीपोंके नाम महाभारतमें भारतवर्षका सम्पूर्ण ज्ञान था । ग्रीक हैं: और यह स्पष्ट कहा गया है कि द्वीप लोगोंके वृत्तान्तसे भी यही जान पड़ता सात हैं । इनमें मुख्य जम्बू द्वीप अथवा है। पञ्जाबमें आये हुए सिकन्दरको कन्या- सुदर्शन द्वीप है, जिसमें हम लोग रहते कुमारीतकके देशोंका, लम्बाई-चौड़ाई : है। यह द्वीप गोल अथवा चक्राकार है सहित, पक्का ज्ञान प्राप्त हो गया था: और और चारों ओर लवण-समुद्रसे घिरा हुआ कनिंगहमने स्वीकार किया है कि यह । है। जैसा कि, अन्यत्र नकशेमें दिखलाया शान बिलकुल ठीक यानी वास्तविक दशा- गया है, इसके सात वर्ष अथवा भाग किये के अनुकूल था। इसके विरुद्ध अनेक लोग हुए हैं । बिलकुल नीचेका यानी दक्षिण अनुमान करते हैं: पर वह ग़लत है। श्रीरका भाग भारतवर्ष है। इसके उसरमें महाभारतसे यह भी अनुमान किया जा हिमालय पर्वत है। हिमालय पर्वतके सिरे सकता है कि, इसके पहले, अर्थात् भार । पूर्व-पश्चिम समुद्र में डूबे हुए हैं । हिमा- तोय युद्ध-कालमें, पार्योको भारतवर्षका लय पर्वतके उत्तरमें हैमवत-वर्ष है; और कितना ज्ञान था। महाभारत-कालमें न : उसके उत्तरमें हेमकूट पर्वतकी श्रेणी है। केवल भारतवर्षका सम्पूर्ण ज्ञान था, बल्कि यह श्रेणी भी पूर्व-पश्चिम समुद्रतक अासपासके देशोंकी, अर्थात् चीन, तिब्बत, : फैली हुई है। इसके उत्तर ओर, कितने ही ईरान इत्यादि देशोंकी भी बहुत कुछ जान- | हजार योजनोंके बाद, निषध पर्वतकी कारी थी। यह उनको जानकारी प्रत्यक्ष श्रेणी पूर्व-पश्चिम समुद्रतक फैली हुई होगी। हाँ, सम्पूर्ण पृथ्वीके विषयमें उन्होंने है । यहाँतकका शान प्रत्यक्ष अथवा जो कल्पना की थी, सो अवश्य ही प्रत्यक्ष सुनकर महाभारतकालमें था । क्योंकि शानसे नहीं की थी, किन्तु केवल अपनी यह स्पष्ट है कि, इन तीन पर्वतोंकी श्रेणियाँ कल्पनाके तरडोसे निश्चित की थी। आज-हिमालय, केनलन (काराकोरम) और कल जो वास्तविक दशा है. उसके वह लताई नामक पर्वतोंकी पूर्व-पश्चिम अनुकूल नहीं है। प्राचीन कालके लोगों-श्रेणियाँ हैं । महाप्रस्थानिक पर्षमें यह को सम्पूर्ण पृथ्वीका ज्ञान होना सम्भव वर्णन है कि, जिस समय पांडव हिमा- भी नहीं था। महाभारतके भीष्म पर्वमें लयके उत्तरमें गये, उस समय उन्हें बालु- और अन्य जगह, विशेषतः भिन्न भिन्न कामय समुद्र मिला । यह समुद्र गोबीका तीर्थ-यात्राओके वर्णनसे और दिग्विजयोंके रेगिस्तान है। ये तीन श्रेणियाँ अवश्य ही