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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४११

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  • भूगोलिक ज्ञान । ॐ

जानकारीसे लिखी गई हैं। हेमकृट और वे पुण्यवान् और तपस्वी हैं। इसके सिवा निषध पर्वतके बीचके भागको हरिव उनके विषयमें यह भी कल्पना है कि, कहते थे। हरिवर्ष में जापान, मङ्गोलिया, उसरोत्तर सात वर्षों या भागों में अधिका तुर्किस्तान, रूस, जर्मनी, इङ्गलैंड इत्यादि धिक पुण्य,आयु, धर्म और काम है। यह देशोका समावेश होता है। हैमवत वर्षमें कल्पना की गई है कि किमवान् पर्वत पर चीन, तिब्बत, ईरान, ग्रीस, इटली, इत्यादि राक्षस, हेमकृट पर गुह्य, निषध पर सर्प, देश होंगे। महाभारतसे जान पड़ता है श्वेत पर देवता और नील पर ब्रह्मर्षि कि इनका शान भारतवासियोंको था। रहते हैं । जम्बू द्वीपमें एक बहुत बड़ा हाँ, अब इसके आगे जो वर्णन दिया जम्बूवृक्ष अर्थात् जामुनका पेड़ है, जो सब हुआ है, वह अवश्य ही काल्पनिक हो काम पूर्ण करनेवाला है। इसकी ऊँचाई सकता है। निषधके उत्तर ओर मध्यमें ११०१ योजन है। इसके बड़े बड़े फल मेरु पर्वत है; और मेरुके उत्तर ओर फिर जमीन पर गिरते हैं। उनसे शुभ्र रसकी तीन श्रेणियाँ नील, श्वेत और शृङ्गवान् एक नदी निकलती है, जो मेरु पर्वतकी नामक, दक्षिणकी पंक्तियोंकी भाँति ही, प्रदक्षिणा करती हुई उत्तर कुरुमें चली पूर्व-पश्चिम समुद्रोंतक फैली हुई मानी जाती है। इस मीठे जम्बु-रसको पीकर गई हैं। इनका वास्तविक दशासे मेल नहीं लोगोंका मन शान्त हो जाता है और वे मिलता। यह भी स्पष्ट है कि, ८४ सहस्र भूख-प्याससे रहित हो जाते हैं। इस योजन ऊंचासुवर्णका मेरु पर्वत काल्पनिक रससे इन्द्रगोपकी तरह चमकदार जाम्बू- है । उत्तर ध्रुवकी जगह यदि मेरुकी नद नामक सुवर्ण उत्पन्न होता है। देवता कल्पना की जाय. तो मेरुके उत्तर श्रोर. लोग इस सुवर्णके श्राभूषण पहनते हैं अर्थात् अमेरिका खराडमें पूर्व-पश्चिम ! (भोप्मपर्व)। उपर्युक्त वर्णनसे पाठकोंको पर्वतकी श्रेणियाँ नहीं हैं। अतएव यह यह मालूम हो जायगा कि हमारे इस स्पष्ट है कि नील, श्वेत और शृङ्गवान द्वीपको जम्बूद्वीप क्यों कहते हैं। इसके पर्वतोंकी श्रेणियाँ काल्पनिक हैं। प्राचीन सिवा, यह भी पाठकोंके ध्यानमें श्रा लोगोंने यह कल्पना की है कि दक्षिण जायगा कि जाम्बुनद शब्दका-लाल रङ्गका ओरकी श्रेणियोंकी भाँति ही, उत्तर ओर- सोना-यह अर्थ क्योंकर हुआ है। मेरुके की श्रेणियाँ होंगी। इस मेस पर्वतके पास-पासके प्रदेशमें, अाजकलके हिसाब- दो तरफ माल्यवान् और गन्धमादन से साइबेरिया और कनाडा प्रान्तोका नामकी दो छोटी श्रेणियाँ, उत्तर-दक्षिणकी समावेश होता है। इन प्रान्तोंमें आजकल ओर, कल्पित की गई है। नील पर्वत श्वेत- भी सोना पृथ्वीके पृष्ठ भाग पर फैला हुआ पर्वत और श्रृंगवान् पर्वतके उत्तर ओरके मिलता है । साइबेरियाकी नदियोंसे बहुत प्रदेशको नीलवर्ष, श्वेतवर्ष और हैरण्यक सुवर्णकण बहकर आते हैं। इससे जान अथवा ऐरावतवर्ष नाम दिये गये हैं। पड़ता है कि, इस प्रदेशकी कल्पना केवल मेरुपर्वतके चारों ओर चार प्रति पुण्यवान् मस्तिष्कसे ही नहीं निकाली गई है, किन्तु प्रदेश उत्तर कुरु, भद्राश्व, केतुमाल और उसके लिए प्रत्यक्ष स्थिनिका भी कुछ जम्बूद्वीप नामक कल्पित किये गये हैं। प्राधार है । इसके सिवा, लोकमान्य इन प्रदेशोंके लोग अत्यन्त सुखी, सुन्दर तिलकके मतानुसार आर्योका मूल निवास और दस हजार वर्षको आयुके होते हैं। यदि उत्तर ध्रुवके प्रदेशमें था, तो कहना