सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१६
महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा * साधारणके लिये दुर्बोध हो गये थे। पता भी न था। वर्तमान स्वरूपके उनकी समझमें आने योग्य कोई एक धर्म- पुराण उस समय न थे। ये सब ग्रन्थ उस ग्रन्थ उस समय न था। प्राचीन समयके समय बीज-रूपसे होगे; और उनका जो बड़े बड़े पूर्वजों और अवतारी पुरुषोंके विस्तार इस समय देख पड़ता है वह निस्स- मान इधर उधर बिखरे हुए पड़े थे और न्देह महाभारतके अनन्तर हुआ है। किंबहुना वे गाथा रूपी छोटे छोटे आख्यानोंमें प्रायः इसमें सन्देह नहीं कि महाभारतके प्रत्यक्ष जुन से हो गये थे। उस समय ऐसे ग्रन्थों उदाहरणसे ही इन सब धार्मिक ग्रन्थोको का बहुत बड़ा अभाव था जो नीति . पूर्ण स्वरूप देनेकी स्फूर्ति सनातन-धर्मीय और धर्मकी शिक्षा देकर समाजमें धार्मिक प्राचार्योंको हुई। अर्थात्, ऐतिहासिक तथा नीतिमान होनेकी स्फूर्ति उत्पन्न कर दृष्टिसे, इन सब ग्रन्थोके पूर्व-स्वरूपका सकते । ऋषियों और राजाओंकी बिखरी निश्चय करनेके लिये इस समय महाभारत हुई वंशावली सूतो अथवा भाटोंकी जीर्ण ही एक मात्र साधन उपलब्ध है। पोथियों में प्रायः नए सी हो गई थी और इस प्रकार अशोकके समय, अथवा पराक्रमी पूर्वजोंका प्रायः विस्मरण ही हो। उस समयके लगभग, बौद्ध और जैन- गया था। ऐसी अवस्थामें उक्त दो नास्तिक धर्मोंने सनातन धर्मपर जो हमला किया धर्मोंका सामना करना, सनातन-धर्मके था, उसका प्रतिकार करनेके लिये सना- लिये, और भी अधिक कठिन हो गया। तनधर्मावलम्बियोंके पास कुछ भी साधन सनातन-धर्माभिमानी विद्वान् पण्डितोंको या उपाय न था और उनके धर्ममें भिन्न ग्रह मय होने लगा कि बौद्ध और जैन भिन्न मतोंकी खींचातानी हो रही थी। धौकी ही विजय होगी। | ऐसी अवस्थामें सौतिने भारतको महा- अब यहाँ प्रश्न उठता है कि हमारे भारतका बृहत् स्वरूप दिया, सनातन- धर्मके प्रतिपादक जो अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थ धर्मके अन्तस्थ विरोधोंको दूर किया, सब हैं, क्या उनका उस समय अस्तित्व न था ? ' मतोंको एकत्र कर उनमें मेल करनेका क्या उस समय रामायण और मनुस्मृति यत्न किया, सब कथाओंका एक स्थानमें का पता नहीं था? वेदान्त, न्याय, सांख्य संग्रह करके उन कथाओंको उचित स्थान और मीमांसाके सूत्र उस समय कहाँ चले देकर भारत ग्रन्थ की शोभा बढ़ाई और गये थे? क्या उस समय पुराण और इति- सनातन धर्म के उदात्त स्वरूपको लोगोंके हास थे ही नहीं ? इन सब प्रश्नोंका 'नहीं मतपर प्रतिबिम्बित करके सनातनधर्मा- थे। यही उत्तर है। ये ग्रन्थ इस समय वलम्बियों में एक नूतन शक्ति उत्पन्न कर जिस स्वरूपमें देख पड़ते हैं, उस स्वरूपमें देनेका महत्त्वपूर्ण कार्य किया। कुछ लोग ब महाभारतक बाद बने है। इस काल- यह समझते हैं कि महाभारत-ग्रन्थमें निर्णयका विचार प्रसंगानुसार आगे किया अनन्त कथाओंका आडम्बर मात्र है, जायगा । यहाँ सिर्फ इतना कह देना काफी परन्तु यह समझना गलत है। निस्सन्देह होगा कि वर्तमान समयकी रामायण शक- महाभारत हाथीके शरीरके समान बहुत के पूर्व पहिली सदीको है और वर्तमान बड़ा है: परन्तु वह हाथी वैसा ही सुन्दर, मनुस्मृतिका भी समय वही है। वेदान्त- सुश्लिष्ट और सुबद्ध भी है । यह सम्पूर्ण सूत्र और योग-सूत्र शकके पूर्व दूसरी ग्रन्थ एक सूत्रसे बना हुआ देख पड़ता सदी है। उस समय सांख्य सूत्रोंका तो है। सनातन-धर्मका विरोधरहित उपदेश