सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१६
महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा 8 - - - अबतक यही नक्षत्र-गणना चली आ रही डूबने के पश्चात् ही यह देखकर ध्यान है। पिछले क्रमके अनुसार, सम्पातगनि- देना सम्भव है कि कौन कौन नक्षत्र के कारण, आगे कभी न कभी नक्षत्रारम्भ क्षितिज पर देख पड़ते हैं। इस तरह एक या दो नक्षत्रोंके पीछे हटकर रेवती भारती श्रार्योंको यह बात मालूम थी कि अथवा उत्तरा भाद्रपदसे करना पड़ेगा। नक्षत्र-मण्डलमें सूर्य भी घूमता है। सूर्यके पहले रोहिणी नक्षत्र किसी समय समग्र मण्डलके चक्करके लिए ३६५। दिन सब नक्षत्रोंमें प्रमुख था, इस बातको लगते हैं। इतने समयमें चन्द्रमा ३५४ दर्शानेवाली एक और कथा महाभारतमें दिनों में बारह परिकमाएँ करता है, और है। ये सत्ताइसों नक्षत्र दक्ष प्रजापतिकी कुछ दिन बच रहते हैं । यह स्पष्ट है कि कन्याएँ हैं: उसने इनका विवाह चन्द्रमा- महीनोंकी कल्पना चन्द्रमाके घूमनेसे ही के साथ कर दियाः किन्तु चन्द्रमाने सब होती है और अमावस्या-पूर्णिमासे महीनों- पर एकसी प्रीति न करके रोहिणी पर का ज्ञान होता है। वर्षकी कल्पना सूर्यकी अत्यधिक प्रेम करना प्रारम्भ कर दिया। गतिसे है। इस तरह एक वर्षमें बारह तब, औरोंने दक्षसे इस बातकी शिकायत महीने और १११ दिन होते हैं । इस की। किन्तु इधर चन्द्रमा दक्षकी एक न रीतिमे यद्यपि चान्द्र महीनोंसे सौर सुनता था। तब दक्षने चन्द्रमाको शाप दिया वर्षका मेल नहीं मिलता, तथापि भारती कि जा त क्षयो हो जायगा । इस कारण पायौंने न तो चान्द्र महीनोंको ही छोड़ा चन्द्रमाको क्षय होता है और प्रभास और न सौर वर्षको ही। क्योंकि पूर्णिमा तीर्थ में स्नान करनेसे वह मुक्त हो जाता अमावस्या पर उनका विशेष यज्ञ होता है (शल्य पर्व सरस्वती आख्यान)। इस था और वे सौर वर्षको भी छोड़ न कथाका तात्पर्य इतना ही है कि चन्द्रमा- सकते थे। कारण यह है कि ऋतुमान की गति न्यूनाधिक परिमाणसे शीघ्र सौर वर्ष पर अवलम्बित है। इसके लिए अथवा मन्द रहती है। इस कारण ऐसा उन्होंने चान्द्र मासके साथ सौर वर्ष- देख पड़ता है कि रोहिणी नक्षत्रमें वह का मेल मिलानेका प्रयत्न किया। महा- बहुत समयतक रहता है। प्रभास तीर्थ भारत-कालमें उन्हें मालुम न था कि पश्चिमकी ओर है, और अमावस्याके सौर वर्ष ठीक ३६५। दिनोंका है । नाक्षत्र पश्चात् चन्द्रमाका उदय पश्चिममें होता सौर वर्ष लगभग ३६६ दिनोंका होता है। है। इससे यह कल्पना हुई है कि प्रभास इस हिमाबसे उन्होंने पाँच वर्षके युगकी तीर्थ में स्नान करनेसे चन्द्रमा क्षय रोगसे कल्पना की और इन पाँच वर्षोंमें दो मुक्त हो जाता है। महीने अधिक मिलानेकी रीति चलाई । भिन्न भिन्न नक्षत्रोंसे चन्द्रमाकी गति- स्पष्ट है कि पाँच वर्षमें लगभग दो महीने का ज्ञान महाभारत-कालमें अच्छा हो अधिक (१२४५ = ६० दिन) चान्द्र मासमें गया था। इसी तरह नक्षत्रोंमें सूर्यके बढ़ जाते हैं। हमने पहले एक स्थान पर गमनका भी शान महाभारतके समय दिखलाया ही है, कि प्रारम्भमे ये दोनों खासा हो गया था। इसमें सन्देह नहीं कि महीने अर्थात् समूची एक ऋतु, एक ही रातका समय होनेसे नक्षत्रोंमें चन्द्रमाकी समय, बढ़ा देनेकी रीति भारती युद्ध- गति देख लेना सहज है, परन्तु सूर्यको कालमें रही होगी। भारतीयद्ध के समय गतिकी ओर सूर्य उगनेके पूर्व और कुछ लोग तो ३५४ दिनका चान्द्र वर्ष