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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४६६

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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा #

हुए थे। आजकल गर्गको जो एक संहिता (३) निरुक्त, (४) कल्प, (५) छन्द उपलब्ध है उसका अस्तित्व महाभारत- और (६) शिक्षा। कालमें भी रहा होगा। यह पहले लिखा ही जा चुका है कि गर्गजी महाभारतसे अब निरुक्त अथवा शब्द-प्रवचन पर पुराने हैं। ज्योतिषमें गर्गके मुहूर्त वारम्वार विचार करना है । यार विचार करना है। यास्कका निरुक्त प्राज- मिलते हैं और श्रीकृष्णके चरित्रमें गई- कल वेदाङ्गके नामसे प्रसिद्ध है और यह चार्य ही ज्योतिषी वर्णित है ।* निर्विवाद है कि यास्क, महामारत-काल- से पूर्वके हैं। इनका नाम महाभारतमें अनुशासन पर्वके १८वें अध्यायमें यह श्लोक है- चतुःषष्ट्यंगमददत्कलाशानं ममाद्भुतम् । कोषका भी उल्लेख (शान्ति पर्वके ३४३२ सरस्वत्यास्तटे तुष्टो मनोयज्ञेन पाण्डव ।। इसमें ६४ अंगोंकी कलाओंका ज्ञान वर्णित है । ६४ अध्यायमें) पाया है। अब एक अङ्ग छन्द अंगोंके उल्लेखसे निश्चय होता है कि यह ग्रन्य वर्तमान बाकी रह गया। इस अङ्गके का पिल समयमें प्रसिद्ध गर्ग-संहिता ही है । वृद्ध गर्ग संहिताको है । वैदिक लोग इन्हींका छन्दःशास्त्र पढ़ते प्रति पूनेके डेक्कन कालेजमे है । इसके प्रथम अध्यायमें है। परन्तु इस पिङ्गलका उल्लेख महा- ६४ अंगोंका होना बतलाकर फिर प्रत्येकका विषय भी भारतमें नहीं है। उल्लेख नहीं है तो न बतलाया गया है। निश्चय होता है कि महाभारतमे पाये सही. उससे कुछ अनुमान नहीं निकलता: जानेवाले ज्योतिविषयक उल्लेख इमी मंहितासे लिये गये 1 और इन पिङ्गलको महाभारतसे पूर्वका है। महाभारतके बहुतेरे वचन इस ग्रन्थके वाक्योंसे मिलने । है। इसमें भी कहा गया है कि नक्षत्र 'मर्याद्विनि मानना चाहिए। आजकल पाणिनिकी सुताः।" चन्द्रका समुद्रसे उत्पन्न होना और दक्ष शाप- 'शिक्षा' प्रसिद्ध है। परन्तु प्रत्येक वेदकी से उसकी क्षयवृद्धिका होना भी इसमे बतलाया गया है। शिक्षा भिन्न भिन्न है। महाभारतम (शां० इसमे कहा गया है कि राहु तमोमय है और वह आकाश- प०अ० १४२) एक शिक्षाके प्रणेताका में घमता है। इसमे राहुचार, गुरुचार, शुक्रचार आदि उल्लेख है। "बाभ्रव्य-कुलके गालवने क्रम- भी वर्णित हैं। इनके माधार पर, युद्धमे होनेवाले जयाप- : जय और राजाओके जीवन-सम्बन्धी अनेक शुभ-अशुभ , शास्त्रमें पारङ्गतता प्राप्त करके, 'शिक्षा' फल बतलाये गये है । मङ्गलके वक्रका और वक्रानुबक्रका · श्रीर 'कम दो विषयो पर ग्रन्थ लिखे।" बहुत बुरा परिणाम बतलाया गया है। महाभारतकं भीष्म अब रह गया कल्प । कल्पका अर्थ है, भिन्न पर्वकै प्रारम्भमें दुश्चिह्नसूचक मंगलकं जो वक्र और भिन्न वेदोंकी यशसम्बन्धी जानकारी वक्रानुवक बतलाये गये है व इसीके आधार पर हैं ।। दशोनेवाले सूत्र। इन कल्प-सूत्रोके कत्तो उनकी व्याख्या भी यहां दी गई है- अनेक हैं, पर उनका उल्लेख महाभारतमें अगारराशिप्रतिमं कृत्वा वर्क भयानकम् । नक्षत्रमेतियत्पश्चादनुवक्र तदुच्यते। | ष्यन्ति' इस प्रकार शक राजाभोंतक उल्लेख है। युग-परि- तथा वक्रानुवक्रेण भौमो हंति महीक्षिताम् ।। माण नहीं दिया गया है तथापि कृतयुगके विषयमे "शत- इस संहितामें सारा विषय नक्षत्रों पर प्रतिपादित है। वर्षसहस्राणि श्रायुस्तेषां कृते युगे" कहा है। इस वाक्यसे इसमें राशियोंका बिलकुल उल्लेख नहीं है, अतएव इस यह नहीं कहा जा सकता कि चतुर्युग बारह हजार ग्रन्थका शक-पूर्व होना निश्चित है। इसमे सप्तपिचार । वर्षका होता है। नही वर्णित हैं, इससे जान पड़ता है कि यह कल्पना शतशतसहस्राणा मेप काल: मदा स्मृतः । पीछेकी है। इसमें युग पुराण नामक एक अध्याय है। पृण युगसहमान्तो कल्पो निःशेष उच्यते॥ परन्तु वह ६४ अंगोको सचीमे नही है, इससे यद्यपि कहना। यह एक और नोक है। अस्तु: इन बातोसे निश्चय पड़ता है कि वह पीछेसे शामिल किया गया है, नथापि वह होता है कि उक्त वृद्ध गर्ग-संहिता ग्रन्थका ही उल्लेख है बहुत प्राचीन । उसमे पाटलीपुत्रको स्थापना, शालि, शुक । महाभारतमे हैं। इसमे ६४ श्रांग है और ४० उपागोक राजा आदिका वर्णन है और 'सकिने समगजानो भवि होनेका वर्णन है।