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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४७

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  • महाभारतके कर्ता है

रिक्त तीन सौ पशु यज्ञस्तम्भ से बाँधे गये हिंसाभिमानी पक्षको क्रोध पाया । तब थे" इत्यादि वर्णन सुनकर अहिंसा-मत- सौतिने अन्तिम अध्यायमें यह जोड़ दिया वादी लोगोंको बहुत बुरा लगता होगा। कि नकुलने जो निन्दा की है वह क्रोधको यह प्रवृत्ति बौद्ध और जैन धर्मों के उदय- शाप होनेके कारण उस खरूपमें क्रोध के अनन्तर और भी अधिक बढ़ गई द्वारा की गई है। सारांश, यद्यपि यहाँ होगी। यहाँ जो नकुलको कथा दी गई है। दोनों पक्षोंका वर्णन किया गया है, तथापि उसका उद्देश हिंसायुक्त अश्वमेधकी निन्दा निर्णय कुछ भी देख नहीं पड़ता। मालूम करना ही है। एक ऋषिने अनाजके कुछ होता है कि सौतिने दोनों पक्षोंको राज़ी दाने भोजनके लिये चुन लिये थे। उसी- रखनेके लिये यह यत्न किया है। का दान उसने एक विप्र अतिथिको कर दिया और स्वयं प्राणत्याग किया । नकुल- (२) कथा-संग्रह। ने कहा-“उस सक्थु यशमें मेरा मस्तक महाभारतका विस्तार करनेमें सौति- सुवर्णमय हो गया है और अब यह जानने का दूसरा उद्देश कथाओंका संग्रह करना के लिये कि मेरा शेष अङ्ग युधिष्ठिरके देख पड़ता है। अनेक राजाओं और यज्ञमें सुवर्णमय होता है या नहीं, मैंने यहाँ ऋषियोंकी जो कथाएँ लोगोंमें अथवा भी लोट-पोट की ।” परन्तु उसका शरीर छोटी छोटी गाथाओंमें इधर उधर सोनेका नहीं हुआ, इसलिये अन्तमें यज्ञ बिखरी हुई थी, उन सबका किसी एक समाप्तिके समय उसने यज्ञकी निन्दा की। स्थानमें संग्रह किया जाना अत्यन्त श्राप इस कथामें प्रत्यक्ष रीतिसे यह प्रश्न उठाया श्यक था । इन कथाओंसे सनातन-धर्मको गया है कि यश हिंसायुक्त होना चाहिये या एक प्रकारका उत्तेजन मिल सकता था। नहीं। आगे यह वर्णन है कि वैशम्पायनने इसके अतिरिक्त, यह भी आवश्यक था वसुके शापकी कथा सुनाई और ऋषियोंने कि प्राचीन ऐतिहासिक बातोंको एकत्र अहिंसायुक्त यज्ञके ही पक्षका स्वीकार करके सनातनधर्मियोंके पूर्वजोंके सम्बन्धमें किया । (१०६०) इसके बादके अध्यायमें | अभिमान जाग्रत कराया जाय। सम्भव अगस्त्यके यज्ञकी कथा है। इसमें कहा है कि भारतीय-कथाके सम्बन्धमें भी गया है कि बीजसे ही यह हुआ करता अनेक भिन्न भिन्न बातें पीछेसे प्रचलित थाः और जब इन्द्रने क्रोधसे वर्षा बन्द कर हुई हो। इन सब बातोंको एकत्र कर दी तब अगस्त्यने प्रतिज्ञा की कि मैं अपने सौतिने महाभारतको समस्त प्रचलित सामर्थ्यसे बीज उत्पन्न करूँगा। इससे कथाओका एक बृहत् भाण्डागार बना स्पष्ट है कि उक्त नकुल-आख्यान और देनेका प्रयत्न किया है। बौद्ध और जैन अध्याय दोनों मूल भारतके अनन्तरके होंगे। लोग हिन्दुस्थानके प्राचीन प्रसिद्ध पुरुषों भारत-कालमें अहिंसा-पक्ष कुछ इतना की कथाओंको अपने अपने धर्मके स्वरूप प्रवल न था। आगे चलकर जब यह पक्ष में मिला देनेका जो प्रयत्न कर रहे थे, प्रबल होने लगा तब ये कथाएँ बनी होगी उसमें रुकावट डालनेका काम सौतिने और सौतिने उन्हें अपने महाभारतमें अपने महाभारतकी कथाओं द्वारा अच्छी सामिल कर दिया होगा। यह पक्ष बहुधा तरहसे किया। इस प्रकार जिन आख्यानों दक्षिणका होगा क्योंकि अगस्त्व दक्षिणके और उपाख्यानोको सौतिने महाभारतमें ऋषि है। परन्तु इन कथाओंसे वैदिक शामिल किया है, उन सबको अलग अलग