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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५८६

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महाभारतमीमांसा

५५. • महाभारतमीमांसा भिन्न धर्म हुए । कह सकते हैं कि महा- वेदान्त तत्वज्ञानके समान यह तस्व भारतके कालमें एक ही धर्म था। तत्व- सबके लिए उपयुक्त है। कहा है कि सब ज्ञानके लिए किसी ब्रह्मनिष्ठके पास जा तत्वज्ञानोंमें मोक्षकी इच्छा करनेवाले सकते थे। किसी विशिष्ट गुरुके पास पुरुषको सद्वर्तन, सदाचार, नीति और जानेकी आवश्यकताका होना नहीं शान्तिकी आवश्यकता है और ये ही दिखाई देता। । उसके मोक्षके लिए सहायक होते हैं। अर्थात् यह स्पष्ट है कि नीति या दशविध चौथी बात-अन्तमें यह बतलाना धोका उपदेश सब मतोंमें अन्तर्भूत है, जरूरी है कि सब तत्वज्ञानोमें धार्मिक और इसीसे हम इस बातको स्वीकृत नहीं तथा नीतिके आचरणकी आवश्यकता है। कर सकते कि तत्वज्ञानीके मनमाने बर्ताव ___ नाविरतो दुश्चचरितात् नाशान्तो करने में कोई हर्ज नहीं। बहुत क्या कहा मासमाहितः। नाशान्तमानसोवापि प्रज्ञा- जाय, निश्चय तो यही होता है कि सच्चा मेनैनमाप्नुयात् ॥ (कठ) तत्वज्ञानी उत्तम आचरण ही करेगा।