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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५९२

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महाभारतमीमांसा

® महाभारतमीमांसा है। साधारण रीतिसे यही सम्भव है कि दोनों सेनाओमें कमसे कम ५२ लाख मनु भारत-आर्षमहाकाव्यका ही एक भाग प्य थे। ये सेनाएँ लम्बाई में युद्ध भूमि भगवद्गीता है। इतना नहीं, किन्तु भगव- पर कई कोसौतक फैली हुई होगी। दीताका किसी दूसरे रूपमें होना अस- दोनों सेनाएँ एक दूसरेसे आध कोस या म्भव है । यदि हम यह मान लें कि भगव- पाव कोसके अनन्तर पर खड़ी होंगी। दीलामें वर्णित तत्व पहले किसी समय अन्य उस समय धर्म-युद्धकी नीति प्रचलित शब्दों में या अन्य रूपमें उपस्थित थे, और थी, अतएव सम्भव नहीं कि कोई किसी यदि यह भी मान ले कि उस तत्वज्ञानको पर असावधानीकी अवस्थामें शस्त्र चला व्यास अथवा वैशंपायनने अपने शब्दोंमें सके । यदि अर्जुनका रथ कुछ भागे बढ़- वर्तमान रूपसे भारत ग्रन्थमें ले लिया है, कर मध्य भागमें ऐसे स्थान पर खड़ा हो तो इस कथनमें कुछ भी स्वारस्य नहीं है। गया कि जहाँसे दोनों सेनाएँ दिखाई दे इसका कारण यह है कि भगवद्गीताका जो सके तो इस बातमें किसीके आश्चर्य करने वर्तमान रूप है और उसके जो वर्तमान योग्य कुछ नहीं था।श्रीकृष्ण और अर्जुन- शब्द है वही अत्यन्त महत्वके हैं । इस : का सम्भाषण एक घन्टे या सवा घन्नेसे बातको कोई अस्वीकार न करेगा । तब तो अधिक समयतक नहीं हुआ होगा। यह ऐसी कल्पनामें कुछ भी अर्थ नहीं देख : बात इस अनुभवसे सिद्ध है कि जो लोग पड़ता कि भगवद्गीता पहले किसी समय वर्तमान समयमें गीताका पूरा पाठ प्रति- बिलकुल भिन्न मूल स्वरूपमें होगी। दिन किया करते हैं उन्हें इससे अधिक ... समय नहीं लगता। यह भी माननेकी रणभूमि पर गीताका कहा जाना आवश्यकता नहीं कि दोनों दलोके सेना- असम्भव नहीं। पति अर्जुन और श्रीकृष्णके सम्भाषणको कभी कभी कुछ लोग यह प्रश्न भी समाप्तिकी बाट जोहते रहे होंगे: क्योंकि किया करते है कि, क्या इस प्रकार लम्बा- ' इतने बड़े दलकी रचना कर लेना कुछ चौड़ा संभाषण ठीक युद्धकं समय कहीं , एक दो मिनटका काम नहीं है । इसके हो सकता है ? हमारा मत है कि प्राचीन सिवा, ऐतिहासिक लड़ाइयोके वर्णनसे भारतीय आर्योकी परिस्थितिका विचार यह भी ज्ञात होता है कि दलोंके सेनापति करनेसे इस प्रकारका सम्वाद असम्भव अपने अपने दलकी रचना करते समय नहीं जान पड़ता। अधिक क्या कहा जाय, एक दूसरेके दलका बहुत ही सूक्ष्म निरी- प्रत्यक्ष वस्तुस्थितिका इसी प्रकार होना क्षण करने में कई घण्टे लगा दिया करते सम्भव है। भारतीय युद्ध में दोनों ओरकी है । श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत एकत्र और आमने-सामने खड़ी हुई दूसरे योद्धाओको नहीं सुनाई देती थी। सेनाओंके विषयमें यदि उचित कल्पना अर्थात् कहना चाहिए कि उन लोगोंका मनमें की जाय तो यह बात किसी प्रकार ध्यान उनकी ओर न था। यह भी मान असम्भव नहीं जान पड़ती कि दोनों लिया जाना स्वाभाविक है कि वे अपने सेनामोके मध्य भागमें श्रीकृष्ण और दलकी रचनाका निरीक्षण कर रहे हो। अर्जुन रथ पर बैठे हुए विचार कर रहे सारांश, युद्ध-भूमिका विस्तार, अपने थे कि युद्ध करना उचित होगा या अनु-अपने दलोको रचना, उनका निरीक्षण चित। यह बात बतला दी गई है कि' और धर्म-युद्ध के नियम इत्यादि बातोका