सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ॐ भगवद्गीता-विचार। * लस्थित है। यह कल्पना कि विवस्वानका अर्थात ऐतिहासिक सप्तर्षि ये ही हैं। जब पुत्र ही वर्तमान मनु है, ऋग्वेद परसे भिन्न भिन्न मनुके भिन्न भिन्न सप्तर्षि अस्पष्ट दिखाई देता है और वही भग- माने गये, तब पहले स्वायम्भुव मनुके वद्गीतामें है, जहाँ ऐसा वर्णन है कि साथके सप्तर्षि महाभारतके शान्ति पर्वक 'मैंने यह कर्मयोग विवस्वानको बतलाया, ३३५चे अध्यायमें इस प्रकार बतलाये उसने मनुको बतलाया और मनुने गये हैं:- इक्ष्वाकुको बनलाया। अर्थात् उस समय मरीचिरत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः । यह बात मान्य दिखाई देती है कि वर्त- वसिष्टश्च महातेजास्तेहि चित्रशिखण्डिनः॥ मान मनु वैवस्वत् है। हम समझते हैं कि इस श्लोकमें ___चौदह मनुकी, हर एक मनुके भिन्न : उनका उल्लेख नहीं है, क्योंकि ये प्रायः भिन्न सप्तर्षियोकी और वंश-कर्ताओंकी । काल्पनिक है। 'वैदिक इण्डेक्स' पुस्तक कल्पना भगवद्गीताके समयमै न थी। देखनेसे मालूम होता है कि पुलस्त्य, पुलह यह उपर्युक्त अनुमान केवल 'चार मनु' और क्रतुका उल्लेख वैदिक साहित्यमें शब्दोंसे ही नहीं निकलता । किन्तु नहीं है । वसिष्ठ, कश्यप, भरद्वाज, गौतम, 'सात महर्षि' शब्दोंमे भी निकलता विश्वामित्र और अत्रिका उल्लेख ऋग्वेद- है। क्योंकि यदि सप्त मनुकी और उनके सूक्तमें पाया है और ये सब ऋग्वेद-सूक्तों- भिन्न भिन्न मनर्षियोंकी कल्पना प्रचलित के कर्ता हैं । वसिष्ठ, विश्वामित्र और रहती, तो यहाँ सप्त-सप्त महर्षि कहा भरद्वाजके पूर्ण मगडल हैं । अत्रि और होता (श्लोकमें महर्षयः सप्त-मत ये शब्द ' आत्रेयका भी मण्डल है। सूक्तोंके कर्ता चाहिए थे)। हमारा मत है कि भगवद- कश्यप और जमदग्न्य भी अन्य मगडलमें गीनाके अभिप्रेत महर्षि वैदिक-कालके हैं। है। कगवका एक स्वतन्त्र मण्डल है, ये सप्तर्षि वसिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र पर उनका नाम महर्षियोंमें नहीं है। जमदग्नि, गौतम, भरद्वाज और अत्रि हैं। परन्तु महाभारत और हरिवंशसे दिखाई इनका उल्लेख बृहदारण्यकमें है। दसरे दता है कि कराव महर्षि मनके वंशका ब्राह्मणमें ऋग्वेदकी ऋचा तिस्थामत चान्द्रवंशी है । सारांश, सबके उत्पत्ति 'कर्ता "पूर्वे, महर्षि सात हैं । 'महर्षयः ऋषयः सप्त तीरे की व्याख्या करते , सप्त पूर्व में पूर्वे शब्द इसी अर्थका है। समय 'प्राणाघा ऋषयः। प्राणानेत- और महर्षि भी होंगे, पर वे 'पूर्व' यानी दाह । इमावेव गौतमभरबाजी ॥ : सबके पूर्व के उत्पत्तिकर्ता नहीं हैं। "इमावेव विश्वामित्रजमदग्नी । अस्तु । भगवद्गीताके वाक्य में दिये हुए इमाव वसिष्ठकश्यपी । वागे- हैं। येषां लोक इमाः प्रजाः में सूचित समर्षि ऐतिहासिक प्रसिद्ध सप्तर्षि ही यात्रिः॥" कहा है। ऋग्वेदके सूक्तोके किया है कि ये और चार मनु आजतक कर्ता प्रायः ये ही हैं। ये ही वैदिक सप्तर्षि पैदा होनेवाली प्रजाके उत्पादक हैं। हैं और महाभारतमें भी यही वर्णन है कि । उपर्युक्त विवेचनसे हमारा यह मत उत्सरकी ओर ध्रवकी परिक्रमा करनेवाले है कि भगवद्गीताके समयमें सात महर्षि सप्तर्षि ये ही हैं। पुराणों में वर्तमान मन्ध- और चार मनु हो गए. थे, और वैदिक तरके सप्तर्षि ये ही बसलाये गये हैं । साहित्यसे मिलती जुलती यह कल्पना