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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६३१

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® भगवद्गीता-विचार | # उदात्त मत बेधड़क जगत्के सामने रखा आर्य और अनार्य दोनोको समान प्रेमसे है। तत्व-ज्ञानके विषयमें उन्होंने सांख्य रखकर सबको ईश्वर-भक्तिका खुला और और योग, कर्म और वेदान्तका विरोध सुलभ मार्ग दिखा दिया। यद्यपि आज मिटाकर अपने नये भक्ति-मार्गसे उन हिन्दुस्थानमें भिन्न भिन्न वर्ण अपने अपने सबोंका समन्वय किया है और आचार-विचारके कारण विभक्त दिखाई सबोंको अपने उच्च तत्वका अनुयायी देते हैं, तथापि श्रीकृष्णकी भक्ति करने में बनाया है। राजनैतिक विषयमें उन्होंने और उनके मधुर 'गोविन्द नामसे उनका निरपेक्ष स्वार्थ-त्यागका उदाहरण जगत्-कीर्तन करने में सब जातिके और सब को दिखा दिया है। उन्होंने कंस और मतके आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष हिन्दू लोग जरासन्धका नाश अपने स्वार्थके लिए आपसका भेद-भाव भूलकर एक सीढ़ी नहीं किया; और न उन्होंने उससे अपना पर खड़े हो भगवद्भजनमें तल्लीन हो जाते किंचित् भी लाभ उठाया। भारती-युद्ध में हैं। और विश्वास करते हैं कि हम सब- भी उन्होंने पाण्डवोंका पक्ष सत्य जान-जातिनिरपेक्ष-मोक्षपद प्राप्त करेंगे । कर ही उन्हें सहायता दी । दुर्योधन स्वभावतः हजारों वर्षोंसे आजतक कमिष्ठ पाण्डवोंको अधर्मके कारण राज्यपद तथा उच्च,अक्ष तथा सुझ सभी हिन्दू लोग नहीं देता था: इसो लिए उन्होंने हीनबल श्रीकृष्णकी समान भक्ति और प्रेमसे पूजन होनेपर भो पाण्डवोंका पक्ष लेकर करते आये हैं और इसके अनन्तर भी अर्जुनका सारथी बनना स्वीकार किया। भगवद्गीताके दिव्य उपदेशसे मोहित सबसे मुख्य बात तो यह है कि श्रीकृष्णने हो उसकी ऐसी ही पूजा करते रहेंगे।