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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६५

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  • महाभारतके कर्ता

३९ हिमालयका जो वर्णन है वह उसीके मुख- महाभारतकी रचनामुख्यतःअनुष्टुप- से हो सकता है जो उस हिमाच्छादित वृत्तमें की गई है; और अनेक सानोमें ऊँचे प्रदेशमें प्रत्यक्ष रहता हो। जिस उपजाति-वृत्तका भी उपयोग किया गया प्रकारके बवन्डरमें द्रौपदी और पाण्डव है। गम्भीर कथा-वर्णन और महाकाव्यक फंस गये थे वैसे बवन्डर हिमालयमें ही लिये ये वृत्त सब प्रकारसे योग्य हैं। प्राया करते हैं । उस बघन्डरका वर्णन वैसा अर्वाचीन संस्कृत महाकाव्योंमें इन्हीं वृत्तो- ही सरस और वास्तविक है जैसा कि का उपयोग किया गया है। पुराणों में, उस प्रदेशमें रहनेवाला कोई कवि कर उपपुराणों में तथा अन्य साधारण प्रन्यों में सकता है । गन्धमादन-पर्वतका वर्णन | भी अनुष्टुप-छन्दका ही उपयोग किया अतिशयोक्ति-पूर्ण होनेके कारण कुछ जाता है, इसलिये यह वृत्त साधारण सा काल्पनिक मालूम होगा: परन्तु सच बात : हो गया है । परन्तु प्राचीन महाकवियोंके तो यह है कि गन्धमादन-पर्वत भी मेरु- अनुष्टुप छन्दके श्लोक बड़े प्रौढ़ और पर्वतके समान कुछ कुछ काल्पनिक ही है। गम्भीर होते हैं । यह बात रघुवंशके पहले महाभारतमें स्त्रियों और पुरुषोंका जो और चौथे सर्गके श्लोकोसे हर एकके वर्णन है वह अत्यन्त मनोहर और मर्यादा ध्यानमें आ सकती है । महाभारतकी भाषा युक्त है। आधुनिक संस्कृत कवियोंकी नाई गम्भीर और प्रौढ़ है। इसी प्रकार वह इस ग्रन्थमें स्त्रियोंकी सुन्दरताका वर्णन सरल और शुद्ध भी है। सरलता और प्राम्य रीतिसे नहीं किया गया है। युधि- प्रौढ़ताका मेल प्रायः एक स्थानमें बहुत कम ष्टिरने द्रौपदीका जो वर्णन किया है वह देखा जाता है । आधुनिक महाकाव्योकी देखने योग्य है । “जो न तो बहुत ऊँची है . भाषा प्रौढ़ तो अवश्य है, पर इस मुकी और न ठिंगनी, जो न मोटी है न पतली, ! सिद्धि के लिये उनमें सरलताका त्याग जिसके नेत्र और श्वास शरद ऋतुके करना पड़ा है । शब्दोंको रमणीय ध्वनि कमलपत्रके समान बड़े और सुगन्धयुक्त पाठकोंको अच्छी लगती है सही, परन्तु हैं; जिस प्रकार किसी मनुष्यको इच्छा शब्दोंका अर्थसमझने में उन्हें ठहरजापड़ता होती है कि मेरी स्त्री इतनी सुन्दर हो है और विचार भी करना पड़ता है। आधु- उतनी ही जो सुन्दर है: और जो मेरे बाद : निक पुराण-ग्रन्थीकी दशा उलटी है। सोती तथा पहले उठती है। ऐसी अपनी ; उनकी भाषा तो सरल है, परन्तु वह बहुत स्त्री द्रौपदीको मैं दाँवपर लगाता हूँ" : अशुद्ध है और उसमें प्रौढ़ताका नामतक अस्तु; बृहन्नड़ाके भेषमें अर्जुनका जो नहीं है । महाभारतमें दोनों गुण-प्रौढ़ता वर्णन है वह बड़े मज़का और हबह है। और सरलता-पाये जाते हैं । बोलचाल जिस समय भीष्म और द्रोण लड़ाई पर की भाषाका कोई अधिपति और प्रतिभा- जाते हैं, उस समयका वर्णन अथवा मादि- शाली कवि जैसीभापाका उपयोग करेगा, पर्वमें रंगभूमि पर बिना बुलाये जानेवाले वैसी ही भाषा महाभारतकी है। प्रार्नल्ड- कर्णका वर्णन अत्यन्त चित्ताकर्षक है। का कथन है कि प्रौढ़ताके सम्बन्धमें आशा है कि इन उदाहरणोंसे यह विषय मिल्टनके काव्यकी भाषा वैसी ही है जैसी समझमें आ जायगा । अब हम इस काव्य गम्भीरताके लिये होनी चाहिये; परन्तु के चौथे अङ्ग अर्थात् वृत्त और भाषाका वह शुद्ध और अमिश्रित अँगरेज़ी भाषा विवार करते हैं। . . . नहीं है। उसमें लैट्रिन और ग्रीक शब्दों