सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(४५)

उसका विलक्षण ढाढ़स देखकर वे सब आश्चर्य से स्तब्ध हो गये। परन्तु अपना प्रभाव दिखलाने के लिए उनमें से एक चोर ने पथिक के दाहिने हाथ में (जिसमें तलवार थी) ऐसा बाण चलाया कि वह तीर हाथ को छेदकर झाड़ में जा घुसा। उसने तीर को खींच कर निकाल डाला और तलवार चलाने का प्रयत्न किया। पर उसके हाथ से इतना खून बह रहा था कि वह बिलकुल दुर्बल हो गया। तलवार नीचे गिर पड़ी। डाकू उसके बदन पर टूट पड़े और उसकी मुसकें बाँधकर सामान टटोलने लगे। पर जब उसमें कोई भी कीमती चीजें न मिलीं, तो वे बहुत ही निराश हो गए। इतने से माल के लिए अपने जीव की परवाह न करने वाले उस पथिक का उपहास करके, दाँत-ओंठ पीसते हुए सब माल इधर-उधर फेंक दिया। और जैसा कि अंदाज किया था, वैसा कुछ भी माल हाथ न लगा। इससे खिन्न होकर उन चोरों ने पैसे मिलने की नई युक्ति निकाली। बटोही को अच्छा मजबूत कठमस्त देखकर गुलाम बनाकर बेचने का उन्होंने इरादा किया। ऐसे गुलाम की कीमत भी बहुत बढ़िया मिलेगी––यह सोचकर उनमें से एक ने कहा––

"अभी बहादुर इधर आओ। चलो, अब हमारे साथ घर चलो, जब तक तुम्हारा घाव अच्छा न हो जाय, हमारे यहाँ पहुनाई करो। फिर जल्दी ही तुम्हारे लिए कोई दूसरा बन्दोबस्त किया जायेगा। कुछ चिन्ता मत करो।"

फिर पथिक का हाथ उसकी पगड़ी से बाँध दिया और दो चोर उसकी दोनों भुजाओं को पकड़ कर उसे ले चले। वन में कुछ दूर जाने पर कई छोटे-छोटे झोंपड़े नजर आये। वहाँ पहुँचते ही सब लोग ठहर गए। चोर अपने-अपने लड़के-बच्चों के साथ रहते थे। इसलिए उस पथिक के रहने के लिए एक नई झोंपड़ी तैयार की गई। दो-चार दिनों में जब उसका घाव कुछ अच्छा हुआ तो सब चोरों ने एकत्र