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पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/५८

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कि यदि तुम हमारा यह काम कर देओ तो तुमको दस लाख अशर्फियाँ और बहुत कुछ इनाम मिलेगा। इसके सिवाय हमारे राज्य में बड़े ओहदे की जगह भी मिलेगी। यह संदेशा सुनकर उस धनिक ने जो जवाब दिया, वह सदैव ध्यान में रखने योग्य है। उसने कहा––"साहेब, आप मुझ पर कृपा-दृष्टि रखते हैं, इसी से मैं धन्य हूँ। मेरी विनती है कि आप कृपा करके अपने द्रव्य की थैलियाँ मेरे पास न भेजें। क्योंकि मैं यह नहीं जानता कि इस प्रकार के द्रव्य को कैसे गिनते हैं। आप इस बात को अच्छी तरह से याद रखें कि मेरे सम्पूर्ण राष्ट्र की बात तो एक ही ओर रहे, परन्तु इस स्वतन्त्र राष्ट्र में एक छोटे से पत्थर की कीमत, आपके राज्य की सब सम्पत्ति से कई गुनी अधिक है। इसी पर से समझ लीजिए कि इस देश का मान-पान कैसा है। सुलियट लोगों का सम्मान शस्त्रास्त्र में है, द्रव्य में नहीं। क्षणभंगुर द्रव्य की आशा न करके शस्त्रों के बल पर अपना नाम अजर-अमर करना और अपने स्वतन्त्रता की रक्षा करना––यही हमारा काम है, यही हमारा धर्म।"

हम कहते हैं कि––यही सम्मान है।