'रुपिया।'
'हाँ काकी, बेचारी बड़ी सीधी है। झाड़ू लगा देती है, चौका-बरतन कर देती है, लड़के को संभालती है । गाढ़े समय कौन किसी की बात पूछता है काकी !'
'उसे तो अपने मिस्सी-काजल से छुट्टी न मिलती होगी।'
यह तो अपनी-अपनी रुचि है काकी। मुझे तो इस मिस्सी-काजलवाली ने जितना सहाग दिया, उतना किसी भक्तिन ने न दिया । बेचारी रात-भर जागती रही। मैंने कुछ दे तो नहीं दिया। हाँ, जब तक जिऊँगी उसका जस गाऊँगी।'
'तू उसके गुन भभी नहीं जानती धनिया। पान के लिए पैसे कहाँ से आते हैं ?
'किनारदार साड़ियों कहां से आती हैं।'
'मैं इन बातों में नहीं पड़ती काकी। फिर शौक सिंगार करने को किसका भी नहीं चाहता। खाने-पहनने की यही तो उमिर है।'
धनिया का घर आ गया। आँगन में रुपिया बच्चे को गोद में लिये थपक रही यो।बचा सो गया था। धनिया ने बच्चे को खटोले पर सुला दिया। बूटी ने बच्चे के सिर पर हाथ एसा, पेट में धीरे-धीरे उगली गाकर देखा। नाभी पर होग का लेप करने को कहा। रुपिया बेनिया लाकर उसे मलने लगी।
बूटी ने कहा --- ला बेनिया मुझे दे दे।
'मैं डुला दूंगी तो क्या छोटी हो जाऊँगी।'
'तू दिन भर यहाँ काम-धन्धा करती रही है। थक गई होगी।'
'तुम इतनी भलोमान्स हो, और यहाँ लोग कहते थे वह बिना गाली के बात नहीं करती । मारे डर के तुम्हारे पास न आई ।'
बूटी मुस्कराई।
'लोग झूठ तो नहीं करते।'
मैं भाखों की देखो.मानू कि कानों को सुनी ?
आज भी रुपिया भाखों में काजल लगाये, पान खाये, रंगीन साड़ी पहने हुए थी।
किन्तु आज बूटी को मालूम हुआ, इस फूल में केवल रश नहीं है, सुगन्ध भी है।
उसके मन में रुपिया से घृणा हो गई थी, वह किसी देवी मन्त्र से धुल-सी गई।
कितना मशाल लड़की है, कितना पजाधुर । बोली इतनी मीठी है। आजकल की