मानी ने आपत्ति की --- मेरा जो अच्छा नहीं हैं, मैं न जाऊँगी। गोकुल को मां ने कहा-बको क्यों नहीं जाती, क्या वहाँ कोई पहाड़ खोदना है।
मानी एक सुफेद साड़ी पहनकर तांगे पर बैठी, तो उसका हृदय कॉप रहा था और बार-बार आँखों में आंसू भर आते थे। उसका हृदय बैठा जाता था, मानों नदी में बने जा रही हो!
तांगा कुछ दूर निकल गया तो उसने गोकुळ से कहा भैया, मेरा जो न जाने कैसा हो रहा है, घर लौट चलो, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ।
गोकुल ने कहा --- तू पागल है। यहाँ सब लोग तेरी राह देख रहे हैं और तू, कहती है लौर चलो।
मानी --- मेरा मन कहता है कोई भनिष्ट होनेवाला है।
गोकुल --- और मेरा मन कहता है तू रानी बनने जा रही है।
मानी --- दस-पांच दिन ठहर क्यों नही जासे। कह देना मानी बीमार है।
गोकुल --- पागलों की-सी बातें न करो।
मानी लोग कितना हँसेंगे।
गोकुल --- मैं शुभ-कार्य में किसी को हँसी की परवा नहीं करता।
मानी --- अम्माँ तुम्हें घर में घुसने न देंगी। मेरे कारण तुम्हें भी मिडकियाँ मिलेगी।
गोकुल --- इसकी कोई परवा नहीं है। उनकी तो यह आदत ही है।
तांगा पहुंच गया। इन्द्रनाथ की लाता विचारशील महिला थो। उन्होंने आकर वधू को उतारा और भीतर ले गई।
( ६ )
गोकुल यहाँ से घर चला तो ग्यारह बज रहे थे। एक ओर तो शुभ कार्य के पूरा करने का आनन्द था, दूसरो और लय था कि कल मानी न जायगी तो लोगों को क्या जवाब दूंगा। उसने निश्चय किया चलकर सब साफ-साफ़ कह दूँ। छिपाना व्यर्थ है। आज नहीं छल, कल नहीं परसों तो सब कुछ कहना ही पड़ेगा। आज ही क्यों न कह दूं।
यह निश्चय करके वह घर में दाखिल हुआ।