खुल गई बरतन, कपड़े, घी, शकर, सभी सामान इफ़ात से जमा हो गये। रामू
देख-देख जन्ता था और सुभागी उसे जलाने हो के लिए सबको यह सामान
दिखाती थी।
लक्ष्मी ने कहा --- बेटी, घर देवर खर्च करो। मम कोई कमाने वाला नहीं बैठा है। आप ही कुआं खोदना और पानी पीना है।
सुभागी बोली --- बाबूजी का काम तो धूप-धाम से ही होगा अम्मा, चाहे घर रहे या जाय। बाबूजीजी फिर थोड़े हो पायेगे। मैं भैया को दिखा देना चाहती हूँ कि अपना क्या कर सकती है। वह सामने होंगे, इन दोनों के किये कुछ न होगा। उनका यह घमड ते दूंगी।
लक्ष्मी चुप हो रही। तेरहवीं के दिन पाठ गाँव के ब्राह्मणों का भोग हुआ। चारों तरफ वाह-वाह मच गई।
पिठले पहर का समय था। लोग भोजन करके चले गये थे। लक्ष्मी थककर सो
गई थी। केवल सुभागी मची हुई चीज़ें उठा-उठाकर रख रही थी कि ठाकुर सजनसिंह
ने आकर कहा --- अब तुम भी आराम करो बेटी! सबेरे यह सब काम कर लेना ।
ने कहा-अभी यको नहीं हूँ दादा ! आपने जोड़ लिया, कुल कितने