यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७६
मानसरोवर
मिसेज बांगड़ा --- इसी तरह यह सबको बदनाम करती है।
लीलावती --- आप लोग भी तो जो वह कहती है, उस पर विश्वास कर लेती हैं। इस हरयोग में जुगनू को किसी ने जाते न देखा। अपने सिर पर यह तूफान उठते देखकर उसे चुपके से सरक जाने ही में अपनी कुशल मालूम हुई। पीछे के द्वार से निकली और गलियों-गलियों भागी।
मिस खुरशेद ने कहा --- ज़रा उससे पूछो, मेरे पीछे क्यों पड़ गई थी।
मिसेज़ टंडन ने पर जुगनू कहाँ। तलाश होने लगी। जुगनू गायब !
उस दिन से शहर में फिर किसी ने जुगनू की सूरत नहीं देखी। आश्रम के इतिहास में यह मुआमला आज भी उल्लेख और मनोरजन का विषय बना हुआ है।