कर सकते हो। किसी मित्र ने रुपये मांगे और आप के सिर पर बोभा पड़ा बेचारे
कैसे इनकार करें ! आखिर लोग जान जायेंगे कि नहीं कि यह महाशय भी खुक्खल
ही है। इनकी हविस यह है कि दुनिया इन्हें सम्पन्न समझती रहे, चाहे मेरे गहने
हो क्यो न गिरों रखने पड़ें सच कहती हूँ, कभी-कभी तो एक एक पैसे की तगो हो
जाती है और इन भले साक्ष्मी को रुपये जैसे घर में काटते हैं। जब तक रुपये के
चारे-न्यारे न कर लें इन्हें चैन नहीं। इनके करतूत कहा तक गाऊँ । मेरी तो नाक में
दम आ गया। एक न-एक मेहमान रोज यमरान की भांति सिर पर सवार रहते है।
न जाने कहाँ के बेफिक्रे इनके मित्र हैं। कोई कहाँ से मार मरता है, कोई यही से।
घर क्या है, अहिजों का अड्डा है। बरा-सा तो घर, मुश्किल से दो प्लग, ओढना-
बिछौना भी फालतू नहीं ; मगर आप हैं कि मित्रों को निमन्त्रण देने को तैयार !
भाप तो अतिथि के साथ लेटेंगे, इसलिए इन्हें चारपाई भी चाहिए, ओढ़ना-बिछौना
भी गहिए, नहीं तो घर का परदा खुल जाय। जाता है मेरे और बच्चों के सिर ।
गरमियों में तो खैर कोई मुजायका नहीं, लेकिन जाओं में तो ईश्वर ही याद आते हैं।
गरमियों में भी खुली छत पर तो मेहमानों का अधिकार हो जाता है, अब मैं बचों
को लिये पिजड़े में पड़ी फड़फाया करूँ। इन्हें इतनी समझ भी नहीं, कि जब घर
की यह दशा है तो क्यों ऐसों को मेहमान बनायें, जिनके पास कपड़े लत्त तक नहीं।
ईश्वर को दया से इनके सभी मित्र इसी श्रेणी के हैं। एक भी ऐसा माई का लाल
नहीं, जो समय पहने पर धेले से भी इनको मदद कर सके । दो एक बार महाशय
को इसका अनुभव-- अत्यन्त कटु अनुभद-हो चुका है, मगर इस जल भात ने
से आँखें खोलने की कसम खा ली है। ऐसे ही दरिद्र भट्टाचायौ से इनकी पटती
है। शहर में इतने लक्ष्मी के पुत्र है , पर आपका किसी से परिचय नहीं। उनके
पास माते इनकी आत्मा दुखतो है। दोस्ती गोटेंगे ऐसों से, जिनके घर में खाने का
ठिकाना नहीं।
एक बार हमारा कहार छोड़कर चला गया और कई दिन कोई दूसरा कहार न मिला। किसी चतुर और कुशल कहार की तालाश में थी; किन्तु आपको जल्द-से- जल्द कोई आदमी रख लेने की धुन सवार हो गई। घर के सारे काम पूर्ववत् चक रहे थे; पर आपको मालूम हो रहा था कि गाड़ी रुकी हुई है। मे। जूठे घरतन माणना और अपना साग-भाजी के लिए बाजार जाना इनके लिए असह्य हो उठा।