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मानसरोवर


संयोग से उसी वक एक कटा हुआ कानकौआ हमारे ऊपर से गुज़रा। उसको डोर लटक रही थी। लर्को का एक गोल पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। भाई साह, कम्बे हैं ही। उछलकर उसकी डोर पकड़ ली और बेतहाशा होटल की तरफ़ दौड़े। मैं पीछे-पीछे दौड़ रहा था।