लेकिन गोपा के मन में बात जम गई थी। सुन्नो को वह ऐसे घर में ब्याहना चाहती थी, जहाँ वह रानी बनकर रहे।
दूसरे दिन प्रातःकाल मैं मदारीलाल के पास गया और उनसे मेरी जो बातचीत हुई, उसने मुझे मुग्ध कर लिया। किसी समय वह लोभी रहे होंगे। इस समय तो मैंने उन्हें बहुत ही सहृदय, उदार और विनय-शील पाया। बोले-भाई साहब, मैं देव- नाथजीसे परिचित हूँ। आदमियों में रत्न थे। उनको लकी मेरे घर में आये, यह मेरा सौभाग्य है। आप उसकी माँ से कह दें, मदारीलाल उनसे किसी चीज़ की इच्छा नहीं रखता। ईश्वर का दिया हुआ मेरे घर में सब कुछ है, मैं उन्हे जेरबार नहीं करना चाहता।
मेरे दिल का बोझ उतर गया। हम सुनी-सुनाई बातों से दूसरों के सम्बन्ध में कैसी मिथ्या धारणा कर लिया करते हैं, इसका बड़ा शुभ अनुभव हुआ। मैंने आकर गोपा को बधाई दी। यह निश्चय हुआ कि गरमियों में विवाह कर दिया जाय। ,
( ३ )
ये चार महीने गोपा ने विवाह की तैयारियों में काटे। मैं महीने में एक बार
अवश्य उससे मिल आता था ; पर हर भार खिन्न होकर लौटता। गोपा ने अपनी कुल-
मर्यादा का न जाने कितना महान् आदर्श अपने सामने रख लिया था। पगली इस भ्रम
में पड़ी हुई थी कि उसका यह उत्साह नगर में अपनी यादगार छोड़ जायगा। यह न
जानती थी कि यहां ऐसे तमाशे रोज होते हैं और आये-दिन भुला दिये जाते हैं।
शायद वह संसार से यह श्रेय लेना चाहती थी कि इस गई-बौती दशा में भी, लय
हुआ हाथी नौ लाख का है। पग-पग पर उसे देवनाथ को याद आती। वह होते तो
यह काम यों न होता, यों होता, और तब वह शेती। मदारीलाल सज्जन है, यह सत्य
है। लेकिन गोपा का अपनो कन्या के प्रति भो तो कुछ धर्म है। कौन उसके दस-पांच
लड़कियां बैठी हुई हैं। वह तो दिल खोलकर अरमान निकालेगी। सुन्नी के लिए उसने
जितने गहने और जोड़े बनवाये थे, उन्हें देखकर मुझे आश्चर्य होता था। जब देखो,
कुछ-न-कुछ सी रही है, कभी सुनारों की दुकान पर बैठी हुई है, कभी मेहमानों के
आदर-सत्कार का आयोजन कर रही है, मुहल्ले में ऐसा बिरला ही कोई सम्पन्न मनुष्य
होगा, जिससे उसने कुछ कर्ज न लिया हो। वह इसे कर्ज समझती थो; पर देनेवाले
दान समझकर देते थे। सारा मुहला उसका सहायक था। सुन्नी अब मुहल्ले की लड़की