अबूबकर-आज तुम्हारे घर में जैनब हैं, जिन पर ऐसे सैकड़ों हार कुर्बान किये जा सकते हैं।
अवुलआस-तो आपका मतलब क्या है कि जैनब मेरा फिदिया हो ?
जैद-बेशक हमारा यही मतलब है।
अबुलआस---उससे तो कहीं बेहतर था कि आप मुझे कत्ल कर देते।
अबूबकर-हम रसूल के दामाद को कत्ल नहीं करेंगे, चाहे वह विधर्मी ही क्यों न हो। तुम्हारी यहाँ उतनी खातिर होगी, जितनी हम कर सकते हैं।
अवुलआस के सामने विषम समस्या थी। इधर यहाँ की मेहमानी में अपमान था, उधर जैनब के वियोग की दारुण वेदना थी। उन्होंने निश्चय किया, यह वेदना सहूँगा, अपमान न सहूंँगा । प्रेम आत्मा के गौरव पर वलिदान कर दूंगा। बोले- मुझे आपका फैसला मंजूर है। जैनब मेरी फिदिया होगी।
( ७ )
मदीने में रसूल की बेटी को जितनी इज्ज़त होनी चाहिए, उतनी होती थी। सुख था, ऐश्वर्य था, धर्म था; पर प्रेम न था । अवुलआस के वियोग में रोया करती।
तीन वर्ष तीन युगों की भांति बीते । अवुलआस के दर्शन न हुए।
उधर अवुलआस पर उसकी विरादरी का, दबाव पड़ रहा था कि विवाह कर लो , पर जैनब की मधुर स्मृतियाँ ही उसके प्रणय-वचित हृदय को तसकीन देने को काफी थीं । वह उत्तरोत्तर उत्साह के साथ अपने व्यवसाय में तल्लीन हो गया । महीनों घर न आता । धनोपार्जन ही अब उसके जीवन का मुख्य आधार था। लोगो को आश्चर्य होता था कि अब यह धन के पीछे क्यों प्राण दे रहा है। निराशा और चिता बहुधा शराब के नशे से शांत होती है। प्रेम उन्माद से । अबुलआस को धनोन्माद हो गया था। धन के आवरण में ढका हुआ यह प्रेम-नैराश्य था । माया के परदे में छिपा हुआ प्रेम-वैराग्य ।
एक बार वह मक्के से माल लादकर ईरान की तरफ चला । काफिले में और भी कितने ही सौदागर थे। रक्षकों का एक दल भी साथ था। मुसलमानो के कई काफिले विधर्मियों के हाथों लुट चुके थे। उन्हे ज्योंही इस काफिले की खबर मिली, जैद ने कुछ चुने हुए आदमियों के साथ उन पर धावा कर दिया। काफिले के रक्षक लड़े और मारे गये। काफिलेवाले भाग निकले। अतुल धन मुसलमानों के हाथ लग अबुलास फिर कैद हो गये।