रात को एक मित्र के घर सो गया था। दावत थी । खाने में देर हुई, तो मैंने सोचा,
अब कौन घर जाय!
कावसजी ने व्यंग्य-मुस्कान के साथ कहा--किसके यहाँ दावत थी ? मेरे रिपोर्टर ने तो कोई खबर नहीं दी। ज़रा मुझे नोट करा दीजिएगा।
उन्होंने जेब से नोटबुक निकाली।
शापूरजी ने सतर्क होकर कहा-ऐसी कोई बड़ी दावत नहीं थी जी, दो-चार मित्रों का प्रीतिभोज था।
'फिर भी समाचार तो जानना ही चाहिए। जिस प्रीतिभोज मे आप-जैसे प्रति- ष्ठित लोग शरीक हों, वह साधारण बात नहीं हो सकती। क्या नाम है मेजवान साहब का?'
'आप चौंकेंगे तो नहीं ?
'बतलाइए तो।
'मिस गौहर ।'
'मिस गौहर !!'
'जी हाँ, आप चौंके क्यों ? क्या आप इसे तस्लोम नहीं करते कि दिन-भर रुपये-आने-पाई से सिर मारने के बाद मुझे कुछ मनोरंजन करने का भी अधिकार है, नहीं, जीवन भार हो जाय?'
'मैं इसे नहीं मानता।'
'क्यों!'
'इसी लिए कि मैं इस मनोरंजन को अपनी ब्याहता स्त्री के प्रति अन्यान समझता हूँ।
शापूरजी नकली हँसी हँसे-वही दकियानूसी बात। आपको मालूम होना चाहिए, आज का समय ऐसा कोई बन्धन स्वीकार नहीं करता।
'और मेरा खयाल है कि कम-से-कम इस विषय में आज का समाज एक पीढ़ी पहले के समाज से कहीं परिष्कृत है। अब देवियों का यह अधिकार स्वीकार किया जाने लगा है।'
'यानी देवियाँ पुरुषों पर हुकूमत कर सकती हैं ?'
'उसी तरह जैसे पुरुष देवियो पर हुकूमत कर सकते हैं।'