बाबा के पास पहुँचा ! बाबाजी ने कुछ मन्त्र पढा। हाँड़ी को धूनी को राख में रखा
और नेउर को आशीर्वाद देकर विदा किया।
रात-भर करवटें बदलने के बाद नेउर मुंह-अँधेरे बाबा के दर्शन करने गया ; मगर बाबा का वहां पता न था। अधीर होकर उसने धूनी की जलती हुई राख टटोली । हाँडी गायब थी। छाती धक-धक करने लगी। बदहवास होकर बाबा को खोजने लगा। हार की तरफ गया। तालाब की ओर पहुंचा। दस मिनट, बीस मिनट, आध घण्टा ! बाबा का कहीं निशान नहीं । भक्त आने लगे। बाबा कहां गये ? कम्बल भी नहीं, बरतन भी नहीं ।
एक भक्त ने कहा-रमते साधुओं का क्या ठिकाना ! आज यहाँ, कल वहाँ, एक जगह रहे, तो साधु कैसे ! लोगों से हेल-मेल हो जाय, बन्धन में पड़ जायँ ।
'सिद्ध थे।'
'लोभ तो छू नहीं गया था।'
नेउर कहाँ है ? उस पर बड़ी दया करते थे। उससे कह गये होंगे।'
नेउर की तलाश होने लगी, कहीं पता नहीं। इतने मे बुधिया नेउर को पुकारती हुई घर में से निकली! फिर कोलाहल मच गया। बुधिया रोती थी और नेउर को गालियां देती थी।
नेउर खेतों की मेड़ों से बेतहाशा भागता चला जाता था, मानो इस पापी संसार से निकल जायगा।
एक आदमी ने कहा-नेउर ने कल मुझसे पांच रुपये लिये थे । को देने कहा था ।
दूसरा-हमसे भी दो रुपये आज ही के वादे पर लिये थे।
बुधिया रोई-डाढ़ीजार मेरे सारे गहने ले गया। पचीस रुपये रखे थे, वह भी उठा ले गया।
लोग समझ गये, बावा कोई धूर्त था। नेउर को झांसा दे गया । ऐसे-ऐसे ठग पड़े हैं ससार में | नेउर के बारे मे किसीको ऐसा सन्देह नहीं था। बेचारा सीधा आदमी, आ गया पट्टी में। मारे लाज के कहीं छिपा बैठा होगा।
(३)
तीन महीने गुजर गये।
झाँसी जिले में धसान नदी के किनारे, एक छोटा-सा गांव है काशीपुर । नदी के