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पृष्ठ:मानसिक शक्ति.djvu/८

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मानसिक शक्ति।
 


चला जाए और तुम समझो, अहा ! यह तो बड़ा मनोरंजक है अब में इस पर विचार करूगा, परन्तु ऐसी भूल कभी न करना।

अपने मन को उसी तरफ फेर लो और उसी शब्द पर बराबर विचार करते रहो जिस पर पहले करते थे। यदि चाहो तो दूसरे सबेरे कोई दूसरा शब्द लेलो और फिर वह शब्द जीवन और स्वभाव से क्या सम्बन्ध रखता है, इसको सोचो। जब तक उस शब्द के गुण तुम्हारे जीवन में प्रवेश न कर जाऐं तब तक उसको न छोड़ो।

शनैः शनैः शब्दों से सिद्धान्तों तक पहुंच सकते हो और तुमको बहुत जल्दी मालूम हो जाएगा कि तुम अपने प्रातःकाल के ध्यान के विचार का अर्थ दैनिक व्यवहार में प्रयोग कर रहे हो, निस्सन्देह यह प्रयोग होता रहेगा और तुम जानोगे भी नहीं । ऐसा अवश्य होना ही चाहिए, क्योंकि जब गम्भीर विचार हम किसी बात पर करते हैं वह स्वभाव हो जाता है।

मैंने एक बार एक युवती को देखा था जोकि बड़ी मुश्किल से लिख पाती थी। बुरे लेख के कारण स्कूल में उसका सदैव निरादर हुआ करता था और उसके शिक्षकों को पूर्ण विश्वास हो गया था कि अब इसका लेख नहीं सुधर सकता और लड़की स्वयं भी निराश हो गई और बड़ी दुःखित थी। अब वह किसी छुट्टी के दिन अपनी सखी के यहां गई जिसने उसके दुःख को सुनकर पूछा कि बताओ तुम किस प्रकार लिखना चाहती हो। लड़की ने दुखी मन से उत्तर दिया, ओहो, मैं इसको नहीं जानती; मैं इसके मारे मरी जाती हूँ। मुझे उन कापियों के देखने से भी घृणा होती है। उसकी सहेली ने कहा अच्छा